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दोनों वचनों में होती है; जैसे, "अपने भात पिता बिन जग में कोई नहीं अपना पाया।" (आरा॰)। "वह अपनों के पास नहीं गया।"
(ई) प्रत्येकता के अर्थ मे "अपना" शब्द की द्विरुक्ति होती है; जैसे, "अपने-अपनेको सब कोई चाहते हैं।" "अपनी अपनी डफली और अपना अपना राग।"
(उ) कभी कभी "अपना" के बदले "निज" (सर्वनाम) का संबंध-कारक आता है, और कभी कभी दोनों रूप मिलकर आते हैं; जैसे "निजका माल, निजका नैकर।" "हम तुम्हे अपने निजके काम से भेजा चाहते हैं।" (मुद्रा॰)।
(ऊ) कविता में "अपना" के बदले बहुधा "निज" (विशेषण) होकर आता है; जैसे, "निज देश कहते हैं किसे।" (भारत॰)। "वर्णाश्रम निज निज धरम, निरत वेद-पथ लोग।" (राम॰)

३२५—"आप" शब्द आदरसूचक भी है, पर उसका प्रयोग केवल अन्य-पुरुष के बहुवचन में होता है। इस अर्थ में उसकी कारक- रचना निज-वाचक "आप" से भिन्न होती है। विभक्ति के पहले आदरसूचक "आप" का रूप विकृत नहीं होता। इसका प्रयोग आदरार्थ बहुवचन मे होता है, इसलिए बहुत्व का वध होने के लिए इसके साथ "लोग" या "सब" लगा देते हैं। इसके साथ "ने" विभक्ति आती है और संबंध कारक में "का-के-की" विभक्तियाँ लगाई जाती हैं। इसके कर्म और संप्रदान कारकों में दुहरे रूप नहीं आते।

आदरसूचक "आप"

कारक एक॰ (आदर) बहु॰ (संख्या)
कर्त्ता आप आप लोग
आपने आप लोगों ने
कर्म—संप्र॰ आपको आप लोगोंको