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बहुधा "देवी" शब्द आता है; जैसे गायत्री देवी। किसी किसी प्रांत में "बाई" शब्द प्रचलित है; जैसे, मथुरा बाई।

३०३—आदर के लिए कुछ शब्द नामों और उपनामों के पहले भी लगाये जाते हैं; जैसे, श्री, श्रीयुक्त, श्रीयुत, श्रीमान्, श्रीमती, कुमारी, माननीय, महात्मा, अत्रभवान्। महाराज, स्वामी, महाशय, आदि भी कभी कभी नाम के पहले आते हैं। जाति के अनुसार पुरुषो के नामों के पहले पंडित, बाबू, ठाकुर, लाला, संत शब्द लगाये जाते हैं। 'श्रीयुक्त' वा 'श्रीयुत' की अपेक्षा 'श्रीमान्' अधिक प्रतिष्ठा का वाचक है।

[सू०—इन अदरसूचक शब्दों को वचन से केरई विशेष संबंध नहीं है; क्योकि थे स्वतंत्र शब्द है और इनके कारण मूल शब्दों में कोई रूपांतर भी नहीं होता। तथापि जिस प्रकार लिंग में "पुरुष", "स्त्री", "नर", "मादा" और वचन में "लेाग", "गण", "जाति" आदि स्वतंत्र शब्द के प्रत्यय मान लेते हैं, उसी प्रकार इन आदरसूचक शब्दों के आदरार्थ बहुवचन के प्रत्यय मानकर इनका संक्षिप्त विचार किया गया है। इनका विशेष विवेचन साहित्य को विषय है।]


तीसरा अध्याय।

कारक।

३०४—संज्ञा (या सर्वनाम) के जिस रूप से उसका संबंध वाक्य के किसी दूसरे शब्द के साथ प्रकाशित होता है उस रूप के कारक कहते हैं; जैसे, "रामचंद्रजी ने खारी जल के समुद्र पर बंदरे से पुल बँधवा दिया।" (रघु०)।

इस वाक्य में "रामचंद्रजी ने," "समुद्र पर," "बंदरों से" और "पुल" संज्ञाओं के रूपांतर हैं जिनके द्वारा इन संज्ञाओं का संबंध "बँधवा दिया" क्रिया के साथ सूचित होता है। "जल के"