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गैर—गौएँ
[सू०—हिंदी में प्रचलित आकारांत और उकारांत स्त्रीलिंग शब्द संस्कृत के हैं। संस्कृत की कुछ ऋकारांत और व्यंजनांत स्त्री-लिंग संज्ञाएँ हिंदी में आकारांत हो जाती है; जैसे, मातृ-माता, दुहितृ-दुहिता, सीमन्-सीमा, अप्सरस—अप्सरा, इत्यादि।]
( १ ) आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के बहुवचन मे विकल्प से "यें" लगाते हैं, जैसे, शाला—शोलायें, माता—माताये, अप्सरा— अप्सरायें, इत्यादि।
(२) सानुस्वार ओकारांत और औकारांत संज्ञाएँ बहुवचन में बहुधा अविकृत रहती हैं; जैसे, दों, जोखों, सरसों, गौं, इत्यादि। हिंदी में ये शब्द बहुत कम हैं।
२९४—कोई कोई लेखक अकारांत स्त्रीलिंग संज्ञाओं को छोड़ शेष स्त्रीलिंग संज्ञाओं को देने वचने में एकही रूप में लिखते हैं; जैसे, "कई देशों में ऐसी वस्तु उपजती हैं।" (जीविका०)। "ठौर ठौर हिंगोट कूटने की चिकनी शिला रक्खी हैं। (शकु०) "पाती हैं दुख जहाँ राजकुल ही में नारी।" (क० क०)। ये प्रयोग अनुकरणीय नहीं हैं।
२—उर्दू शब्द।
२९५—हिंदी-गत उर्दू शब्दों का बहुवचन बनाने के लिए उनमें बहुधा हिंदी प्रत्यय लगाये जाते हैं; जैसे, शाहज़ादा—शाहज़ादे, बेगम-बेगमें, इत्यादि; परंतु कानूनी हिंदी के लेखक उर्दू शब्दों और कभी कभी हिंदी शब्दों में भी उर्दू प्रत्यय लगाकर भाषा का क्लिष्ट कर देते हैं। उर्दू भाषा के बहुवचन के कुछ नियम यहाँ लिखे जाते हैं—
(१) फारसी प्राणिवाचक संज्ञाओं का बहुवचन बहुधा "आन"