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[सू०—हिंदी में संस्कृत की इन्नत संज्ञाएँ ईकारांत (प्रथमा एकवचन) रूप में आती हैं। जैसे, पक्षीन्=पक्षी, स्वामिन्=स्वामी, योगिन्=योगी, इत्यादि। राम० में "करिन्" का रूप "करि" आया है; जैसे, "संग लाइ करिनी कर लेहीं"। संस्कृत के मूल ईकारंत पुल्लिंग शब्द हिंदी में केवल गिनती के है; जैसे; सेनानी।]

उकारांत—हिंदी शब्द नहीं है।
—(संस्कृत) साधु—साधु

ऊकारांत—( हिंदी ) डाकू—डाकू
—संस्कृत-शब्द हिंदी में नहीं हैं।

ऋकारांत—हिंदी-शब्द नहीं हैं।
—संस्कृत-शब्द हिंदी में आकारांत हो जाते हैं।
और दोनों वचनों में एक-रूप रहते हैं।
(अं०-२८९ अप०-२)।

एकारांत—(हिंदी) चौबे-चौबे।
—संस्कृत शब्द हिंदी मे नही हैं।

ओकारांत—(हिंदी) रासो—रासो
—संस्कृत-शब्द हिंदी में नहीं हैं।

औकारांत—(हिदी) जौ—जौ
—संस्कृत-शब्द हिंदी में नही हैं।

सानुस्वार ओकारांत—(हिंदी) कोदों—कोदों
—संस्कृत शब्द हिंदी में नहीं हैं।

[सू०—पिछले चार प्रकार के शब्द हिंदी में बहुत ही कम हैं।]

(ख) स्त्रीलिंग।

२९१—अकारांत स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन अंत्य स्वर के बदले एँ करने से बनता है; जैसे—

बहिन-बहिनें ऑख-ऑखें