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अर्थात् वे संस्कृत प्रातिपदकों से नहीं, किंतु प्रथमा विभक्ति के एकवचन से आई हैं, जैसे—

हिं० सं०—मू० स्त्री० हिं० स०—मू० स्त्री०
कर्ता कर्त्तृ कर्त्री ग्रंथकर्त्ता ग्रंथकर्त्तृ ग्रंथकर्त्री
धाता धातृ धात्री जनयिता जनयितृ जनयित्री
दाता दातृ दात्री कवयिता कवयितृ कवयित्री

२७७—कई एक सज्ञाओ और विशेषणों में "आ" प्रत्यय लगाया जाता है, जैसे—

सुत सुता पंडित पंडिता
बाल बाला शिव शिवा
प्रिय प्रिया शुद्र शूद्रा
महाशय महाशया वैश्य वैश्या
(अ) "अक" प्रत्ययांत शब्दों में "अ" के स्थान में "इ" हो जाती है; जैसे—
पाठक—पाठिका बालक—बालिका
उपदेशक—उपदेशिका पुत्रक—पुत्रिका

नायक—नायिका


२७८—किसी किसी देवता के नाम के आगे "आनी" प्रत्यय लगाया जाता है; जैसे—

भव—भवानी वरुण—वरुणानी
रुद्र—रुद्राणी शर्व—शर्वाणी

इंद्र—इंद्राणी


२७९—किसी किसी शब्द के दो दो वा तीन तीन स्त्रीलिंग रूप हेाते हैं; जैसे—

मातुल—मातुली, मातुलानी। उपाध्याय—उपाध्यायानी, उपाध्यायी (उसकी स्त्री); उपाध्याया (स्त्री-शिक्षक)।