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संबंध सूचकांत सर्वनाम है; परंतु इसका प्रयोग समुच्चय-बोधक के समान होती है और दो तीन संस्कृत अव्ययों को छोड़ हिंदी में इस अर्थ को और कोई अव्यय नहीं है। 'इसलिए,' 'अतएव,' 'अतः' और (उर्दू) 'लिहाजा' से परिणाम का बोध होता है और यह अर्थ दूसरे अव्ययों से नहीं पाया जाता, इसलिए इन अव्ययों के लिए एक अलग भेद मानने की आवश्यकता है।

हमारे किये हुए वर्गीकरण में यह दोष हो सकता है कि एक ही शब्द कहीं कहीं एक से अधिक वर्गों में आया है। यह इसलिए हुआ है कि कुछ शब्दों के अर्थ और प्रयोग भिन्न भिन्न प्रकार के हैं, परंतु केवल वे ही शब्द एक वर्ग में नहीं आये, किंतु और भी दूसरे शब्द उस वर्ग में आये हैं।]



चौथा अध्याय।

विस्मयादि-बोधक।

२४८—जिन अव्ययो का संबंध वाक्य से नही रहता और जो वक्ता के केवल हर्ष-शोकादि भाव सूचित करते हैं उन्हें विस्मयादि-बोधक अव्यय कहते हैं, जैसे, "हाय! अब मैं क्या करूँ!" (सत्य०)। "हैं! यह क्या कहते हो!" (परी०)। इन वाक्यों में "हाय" दु:ख और "हैं" आश्चर्य तथा क्रोध सूचित करता है और जिन वाक्यों में ये शब्द हैं उनसे इनका कोई संबंध नहीं है।

व्याकरण में इन शब्दों का विशेष महत्व नहीं, क्योंकि वाक्य का मुख्य काम जो विधान करना है उसमें इनके योग से कोई आवश्यक सहायता नहीं मिलती। इसके सिवा इनका प्रयोग केवल वहीं होता है जहाँ वाक्य के अर्थ की अपेक्षा अधिक तीव्र भाव सूचित करने की आवश्यकता होती है। "मैं अब क्या करूँ।" इस वाक्य से शोक पाया जाता है, परंतु यदि शोक की अधिक तीव्रता सूचित करनी हो तो इसके साथ "हाय" जोड़ देंगे; जैसे, "हाय! अब मैं क्या करूँ।" विस्मयादि-बोधक अव्ययों में अर्थ का अत्यंताभाव नहीं है,