विषय को सोचते समय हम एक प्रकार का मानसिक संभाषण करते हैं, जिससे हमारे विचार भापा के रूप में प्रकट होते हैं। इसके सिवा भापा से धारणा-शक्ति को सहायता मिलती है। यदि हम अपने विचारों को एकत्र करके लिख ले तो आवश्यकता पड़ने पर हम लेख-रूप में उन्हें देख सकते हैं और बहुत समय बीत जाने पर भी हमें उनकी स्मरण हो सकता है। भापा की उन्नत या अवनत अबस्था राष्ट्रीय उन्नति या, अवनति का प्रतिबिंब हैं। प्रत्येक नया शब्द एक नये विचार का चित्र हैं और भाषा का इतिहास मानो उसके धोलनेवालों का इतिहास है।
भापा स्थिर नहीं रहती, उसमें सदा परिवर्तन हुआ करते हैं।
विद्वानों का अनुमान है कि कोई भी प्रचलित भाषा एक हजार वर्ष से अधिक समय तक एकसी नहीं रह सकती। जो हिंदी हम लोग आजकल बोलते हैं वह प्रपितामह आदि हमारे पूर्वजों के समय में इसी रूप में न बोली जाती थी, और न उन लोगों की हिंदी वैसी थी जैसी वह महाराज पृथ्वीराज के समय में बोली जाती थी। अपने पूर्वजों की भापा की खोज करते करते हमें अंत में एक ऐसी हिंदी भाषा का पता लगेगा जो हमारे लिये एक अपरिचित भाषा के समान कठिन होगी । भाषा में यह परिवर्तन धोरे धीरे होता है- इतना धीरे धीरे कि वह हंसको मालूम नहीं होता, पर, अंत में, इन परिवर्तनों के कारण नई नई भाषाएँ उत्पन्न हो जाती है। भाषा पर स्थान, जल-वायु और सभ्यता का बड़ा प्रभाव पड़ता है। बहुत से शब्द जो एक देश के लोग बोल सकते है, दूसरे देश के लोग तद्वत्न हीं बोल सकते । जल-वायु में हेर-फेर होने से लोगों के उच्चारण में अंतर पड़ जाता है। इसी प्रकार सभ्यता की उन्नति के कारण नये नये विचारों के लिए नये नये शब्दं बनाने पड़ते हैं, जिससे भाषा का शब्द-कोष बढ़ता जाता है। इसके साथही बहुतसी