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१-प्रस्तावना ।

(१) भाषा ।

 भाषाके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली भाँँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप समझ सकता है।मनुष्य के कार्य उसके विचारों से उत्पन्न होते हैं और इन कार्यों में दूसरों की सहायता अथवा सम्मति प्राप्त करने के लिए उसे वे विचार प्रकट करने पड़ते हैं। जगत का अधिकांश व्यवहार बोल-चाल अथवा लिखा-पढ़ी से चलता है, इसलिए भाषा जगत के व्यवहारका मूल है।
 बहरे और गूंगे मनुष्य अपने विचार संकेतों से प्रकट करते हैं।

बच्चा केवल रोकर अपनी इच्छा जनाता है। कभी कभी केवल मुख की चेष्टा से मनुष्य के विचार प्रकट हो जाते हैं। कोई कोई जंगली लोग बिना बोले ही सकेतों के द्वारा बात-चीत करते हैं। इन सब संकेतों को लोग ठीक ठीक नहीं समझ सकते और न इनसे सच विचार ठीक ठीक प्रकट हो सकते हैं । इस प्रकार की सांकेतिक भाषाओं से शिष्ट समाज का काम नहीं चल सकता । पशु-पक्षी जो बोली बोलते हैं उससे दुःख, सुख, भय आदि मनोविकारों के सिवा और कोई बात नहीं जानी जाती। मनुष्य कीभाषासे उसके सव विचार भली भाति प्रकट होते हैं, इसलिए वह व्यक्तभाषा कहलाती है, दूसरी सब भाषाएँ या वोलियाँ अव्यक्त कहाती हैं। ५. व्यक्तभाषा के द्वारा मनुष्य एक-दूसरे के विचार ही नहीं जान लेते, बरन उसकी सहायता से नये विचार भी उत्पन्न होते है। किसी