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(अ) नीचे लिखे अव्ययों के पहले (स्त्रीलिंग के कारण) "की" आती है—अपेक्षा, ओर, जगह, नाई, खातिर, तरह तरफ, मारफत, बदौलत, संती, इत्यादि।

[सू॰—जब "और" ("तरफ") के साथ संख्यावाचक विशेषण आता है तब "की" के बदले "के" का प्रयोग होता है, जैसे, "नगर के चारों और (तरफ)" "नाईं," "सरीखा" और "सती" का प्रचार कम है।]

(आ) आकारांत संबंधसूचकों का रूप विशेष्य के लिंग और वचन के अनुसार बदलता है और उनके पहले यथायोग्य का, के, की अथवा विकृत रूप आता है, जैसे, "प्रवाह उन्हें तालाब का जैसा रूप दे देता है।" (सर॰)। "बिजली की सी चमक" "सिंह के से गुण।" (भारत॰)। "हरिश्चंद्र ऐसा पति।" (सत्य॰)। "भोज सरीखे राजा। (इति॰)।

२३४—आगे, पीछे, तले, बिना आदि कई एक संबंधसूचक कभी कभी बिना विभक्ति के आते हैं; जैसे, पाँव तले, पीठ पीछे, कुछ दिन आगे, शकुंतला बिना, (शकु॰)।

(अ) कविता में बहुधा पूर्वोक्त विभक्तियों का लोप होता है, जैसे, "मातु-समीप कहत सकुचाहीं।" (राम॰)। सभा-मध्य, (क॰ क॰)। पिता-पास, (सर॰)। तेज-सम्मुख, (भारत॰)।
(आ) सा, ऐसा और जैसा के पहले जब विभक्ति नहीं आती तब उनके अर्थ में बहुधा अंतर पड़ जाता है, जैसे, "रामचंद्र से पुत्र" और "रामचंद्र के से पुत्र।" पहले वाक्यांश में "से" "रामचंद्र और "पुत्र" का एकार्थ सूचित करता है, पर दूसरे वाक्यांश में उससे दोनों का भिन्नार्थ सूचित होता है।