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२३१—प्रयोग के अनुसार संबंधसूचक दो प्रकार के होते हैं—(१) संबद्ध (२) अनुबद्ध।

२३२—(क) संबद्ध संबंधसूचक संज्ञाओं की विभक्तियों के आगे आते हैं, जैसे, धन के बिना, नर की नाई, पूजा से पहले, इत्यादि।

[सू॰—संबंधसूचक अव्ययों के पूर्व विभक्तियों के आने का कारण यह जान पहता है कि संस्कृत में भी कुछ अव्यय संज्ञाओं की अलग अलग विभक्तियों के आगे आते हैं, जैसे, दीनं प्रति (दीन के प्रति), यत्नं-यत्नेन-यत्नात् विना (यत्न के बिना), रामेण सह (राम के साथ), वृक्षस्योपरि (वृक्ष के ऊपर), इत्यादि। इन अलग अलग विभक्तियों के बदले हिंदी में बहुधा संबंध-कारक की विभक्तियाँ आती हैं, पर कहीं कहीं करण और अपादान कारकों की विभक्तियां भी आती हैं।]
(ख) अनुबद्ध संबंधसूचक संज्ञा के विकृत रूप (अं॰—३०९) के साथ आते हैं, जैसे, किनारे तक, सखियों सहित, कटोरे भर, पुत्रों समेत, लड़के सरीखा, इत्यादि।
(ग) ने, को, से, का-के-की, में, भी अनुबद्ध संबंधसूचक हैं, परतु नीचे लिखे कारणों से इन्हें संबंधसूचकों में नहीं गिनते—

(अ) इनमें से प्रायः सभी संस्कृत के विभक्ति-प्रत्ययों के अपभ्रंश हैं। इसलिए हिंदी में भी ये प्रत्यय माने जाते हैं।
(आ) ये स्वतंत्र शब्द न होने के कारण अर्थहीन हैं, परतु दूसरे संबंधसूचक बहुधा स्वतंत्र शब्द होने के कारण सार्थक हैं।
(इ) इनको संबंधसूचक मानने से संज्ञाओं की प्रचलित कारक रचना की रीति में हेरफेर करना पड़ेगा जिससे विवेचन में अव्यवस्था उत्पन्न होगी।

२३३—संबद्ध संबंधसूचकों के पहले बहुधा "के" विभक्ति आती है, जैसे, धन के लिए, भूख के मारे, स्वामी के विरुद्ध, उसके पास, इत्यादि।