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(स्था॰ वा॰)। "दिवाली पास आ गई।" "विवाह का समय अभी दूर है।" (का॰ वा॰)। 'आगे' का कालवाचक अर्थ कभी कभी 'पीछे' के साथ बदल जाता है, जैसे, "ये सब बातें जान पड़ेंगी आगे" (सर॰)। (पीछे)।

तब, फिर—भाषा-रचना में 'तब' की द्विरुक्ति मिटाने के लिए उसके बदले बहुधा 'फिर' की योजना करते हैं; जैसे, तब (मैंने) समझा कि इसके भीतर कोई प्रभागा बद है। फिर जो कुछ हुआ सो आप जानते ही हैं। (विचित्र॰)। कभी कभी 'तब' और 'फिर' एक ही अर्थ में साथ साथ आते हैं, जैसे, "तब फिर आप क्या करेंगे?"

कभी—इससे अनिश्चित काल का बोध होता है जैसे, "हमसे कभी मिलना।" "कभी" और "कदापि" का प्रयोग बहुधा निषेधवाचक शब्दों के साथ होता है, जैसे, "ऐसा काम कभी मत करना।" "मैं वहाँ कदापि न जाऊँगा। "दो या अधिक वाक्यों में "कभी" में क्रमागत काल का बोध होता है, जैसे, "कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर।" "कभी घी घना, कभी मुट्ठी-भर चना, कभी वह भी मना।" "कभी" का प्रयोग आश्चर्य वा तिरस्कार में भी होता है, जैसे, "तुमने कभी कलकत्ता देखा था।"

कहाँ—दो अलग अलग वाक्यो में 'कहाँ' से बड़ा अंतर सूचित होता है, जैसे, "कहँ कुँभज कहँ सिंधु अपारा।" (राम॰)। "कहाँ राजा भोज कहाँ गंगा तेली।"

कहीं—अनिश्चित स्थान के अर्थ के सिवा यह "अत्यंत" और "कदाचित्" के अर्थ में भी आता है, जैसे, "पर मुझ से वह कहीं सुखी है।" (हिदी ग्रंथ॰)। "सखी ने ब्याह की बात कहीं हँसी से न कही हो।" (शकु॰)। अलग अलग वाक्यों में "कहीं" से विरोध सूचित होता है, जैसे, "कहीं धूप, कहीं छाया।" "कहीं