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[टी॰—क्रिया-विशेषणों का ठीक ठीक विवेचन करने के लिए उनका वर्गीकरण एक से अधिक आधारों पर करना आवश्यक है; क्योंकि हिंदी में बहुतसे क्रिया-विशेषण यौगिक हैं और केवल रूप से उनकी पहचान नहीं हो सकती; जैसे, अच्छा, मन से, इतना, केवल, धीरे, इत्यादि। फिर कई एक शब्द कभी क्रिया-विशेषण और कभी दूसरे प्रकार के होते हैं, जैसे, "आगे हमने जान लिया।" (शकु॰)। "मानियों के आगे प्राण और धन तो कोई वस्तु ही नहीं है।" (सत्य॰)। "राजा ने ब्राह्मण को आगे से लिया।" इन उदाहरणों में आगे शब्द क्रमशः क्रिया-विशेषण, संबंधसूचक और संज्ञा है।]

२१३—प्रयोग के अनुसार क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं—(१) साधारण, (२)संयोजक और (३) अनुबद्ध।

(१) जिन क्रिया-विशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतंत्र होता है उन्हें साधारण क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे, "हाय! अब मैं क्या करूँ!" "बेटा, जल्दी आओ।" "अरे! वह साँप कहाँ गया?" (सत्य॰)।

(२) जिनका संबंध किसी उपवाक्य के साथ रहता है उन्हें संयोजक क्रिया-विशेषण कहते हैं: जैसे, "जब रोहिताश्व ही नहीं तो मैं ही जी के क्या करूँगी।" (सत्य॰)। "जहाँ अभी समुद्र है वहाँ पर किसी समय जंगल था।" (सर॰)।

[सूचना—संयोजक क्रिया-विशेषण-जब, जहाँ, जैसे, ज्यों, जितना, संबंधवाचक सर्वनाम "जो" से बनते हैं और उसीके अनुसार दो उपवाक्यों को मिलाते है। (अ॰-१३४)।]

(३) अनुबद्ध क्रिया-विशेषण वे हैं जिनका प्रयोग अवधारण के लिए किसी भी शब्द-भेद के साथ हो सकता है; जैसे, "यह तो किसीने धोखा ही दिया है।" (मुद्रा॰)। "मैंने उसे देखा तक नहीं", "आपके आने भर की देरी है।"

२१४—रूप के अनुसार क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं— (१) मूल, (२) यौगिक और (३) स्थानीय।