पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/१७६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१५५

जाते हैँ उन्हें अनुकरण-धातु कहते हैं। ये धातु ध्वनि-सूचक शब्द के अंत में "आ" करके "ना" जोड़ने से बनते हैं। जैसे,

बड़बड़—बड़बड़ाना, खटखट—खटखटाना,
थरथर—थरथराना, टर्र—टर्राना,
मचमच—मचमचाना, भनभन—भनभनाना।

(अ) नाम-धातु और अनुकरण-धातु अकर्मक और सकर्मक दोनों होते हैं। ये धातु भी शिष्ट सम्मति के बिना नहीं बनाये जाते।

(३) संयुक्त धातु।

[सूचना—संयुक्त धातु कुछ कृदंतों [धातु से बने हुए शब्दों] की सहायता से बनाये जाते हैं, इसलिए इनका विवेचन क्रिया के रूपांतर-प्रकरण में किया जायगा।]

[टी॰—हिंदी व्याकरणों में प्रेरणार्थक धातुओं के सबंध में बड़ी गड़बड़ है। "हिदी-व्याकरण" में स्वरांत धातुओं से सकर्मक बनाने का जो सर्वव्यापी नियम दिया है उसमें कई अपवाद हैं, जैसे "बोआना", "खोआना", "गँवाना", "लिखवाना", इत्यादि। लेखक ने इनका विचार ही नहीं किया। फिर उसमें केवल "घुसना", "चलना" और "दबाना" के दो दो सकर्मक रूप माने गये हैं, पर हिंदी में इस प्रकार के धातु अनेक हैं, जैसे, कटना, खुलना, गड़ना, लुटना, पिसना, आदि। यद्यपि इन धातुओं के दो दो सकर्मक रूप कहे जाते हैं, पर यथार्थ में एक रूप सकर्मक और दूसरा प्रेरणार्थक है, जैसे, घुलना-घोलना, घुलाना, कटना-काटना, कटाना, पिसना-पीसना, पिसाना, इत्यादि। "भाषा-भास्कर" में इन दुहरे रूपों का नाम तक नहीं है। "बाल बोध-व्याकरण" में कई एक प्रेरणार्थक क्रियाओं के जो रूप दिये गये हैं वे हिंदी में प्रचलित नहीं हैं, जैसे, "सोलाना" (सुलाना), "बोलवाना" (बुलवाना), "बैठलाना" (बिठवाना), इत्यादि। "भाषा-चंद्रोदय" में प्रेरणार्थक धातुओं को त्रिकर्मक लिखा है, पर उनका जो एक उदाहरण दिया गया है उसमें लेखक ने यह बात नहीं समझाई और न उसमें एक से अधिक कर्म ही पाये जाते हैं, जैसे, "देवदत्त यज्ञदत्त से पोथी लिवाता है।"]