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(अ) "कहना" के पहले प्रेरणार्थक रूप अपूर्ण अकर्मक भी होते हैं; जैसे, "ऐसे ही सज्जन ग्रंथकार कहलाते हैं।" "विभक्ति-साहित शब्द पद कहाता है।"
(आ) "कहलाना" के अनुकरण पर दिखाना वा दिखलाना को कुछ लेखक अकर्मक क्रिया के समान उपयोग में लाते हैं, जैसे, "बिना तुम्हारे यहाँ न कोई रक्षक अपना दिखलाता।" (क॰ क॰)। यह प्रयोग अशुद्ध है।

(इ) "कहवाना" का रूप "कहलवाना" भी होता है।

(ई) "बैठना" के कई प्रेरणार्थक रूप होते हैं; जैसे, बैठाना, बैठालना, बिठालना, बैठवाना।

२०५—कुछ धातुओं से बने हुए दोनो प्रेरणार्थक रूप एकार्थी होते हैं; जैसे,

कटना—कटाना वा कटवाना
खुलना—खुलाना वा खुलवाना
गड़ना—गड़ाना वा गड़वाना
देना—दिलाना वा दिलवाना
बँधना—बँधाना वा बँधवाना
रहना—रखाना वा रखवाना
सिलना—सिलाना वा सिलवाना

२०६—कोई कोई धातु स्वरूप में प्रेरणार्थक हैं, पर यधार्थ में वे मूल अकर्मक (वा सकर्मक) हैं; जैसे, कुम्हलाना, घबराना, मचलाना, इठलाना, इत्यादि।

(क) कुछ प्रेरणार्थक धातुओं के मूल रूप प्रचार में नहीं हैं; जैसे, जताना (वा जतलाना) फुसलाना, गँवाना, इत्यादि।

२०७—अकर्मक धातुओं से नीचे लिखे नियमों के अनुसार सकर्मक धातु बनते हैं—