पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/१७२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१५१)

२—एकाक्षरी धातु के अंत में "ला" और "लवा" लगाते हैं और दीर्घ स्वर को हृस्व कर देते हैं; जैसे,

खाना खिलाना खिलवाना
छूना छुलाना छुलवाना
देना दिलाना दिलवाना
धोना धुलाना धुलवाना
पीना पिलाना पिलवाना
सीना सिलाना सिलवाना
सोना सुलाना सुलवाना
जीना जिलाना जिलवाना
(अ) "खाना" में आद्य स्वर "इ" हो जाता है। इसका एक प्रेरणार्थक "खवाना" भी है। "खिलाना" अपने अर्थ के अनुसार "खिलना" (फूलना) का भी सकर्मक रूप हो सकता है।
(आ) कुछ सकर्मक धातुओं से केवल दूसरे प्रेरणार्थक रूप (१—अ नियम के अनुसार) बनते हैं, जैसे, गाना-गवाना, खेना-खिवाना, खोना-खोआना, बोना-बोआना, लेना-लिवाना, इत्यादि।

३—कुछ धातुओं के पहले प्रेरणार्थक रूप "ला" अथवा "आ" लगाने से बनते हैं, परंतु दूसरे प्रेरणार्थक में "वा" लगाया जाता है; जैसे—

कहना कहाना वा कहलाना कहवाना
दिखना दिखाना वा दिखलाना दिखवाना
सीखना सिखाना वा सिखलाना सिखवाना
सूखना सुखाना वा सुखलाना सुखवाना
बैठना बिठाना वा बिठलाना बिठवाना