पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/१६६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१४५)
(अ) "लड़का अपने को सुधार रहा है।"—इस वाक्य में यद्यपि क्रिया के व्यापार का फल कर्त्ता ही पर पड़ता है, तथापि "सुधार रहा है" क्रिया सकर्मक है, क्योंकि इस क्रिया के कर्त्ता और कर्म एक ही व्यक्ति के वाचक होने पर भी अलग अलग शब्द हैं। इस वाक्य में "लड़का" कर्त्ता और "अपने को" कर्म है, यद्यपि ये दोनों शब्द एक ही व्यक्ति के वाचक हैं।

१९२—कोई कोई धातु प्रयोग के अनुसार सकर्मक और अकर्मक दोनो होते हैं, जैसे, खुजलाना, भरना, लजाना, भूलना, घिसना, बदलना, ऐंठना, ललचाना, घबराना, इत्यादि। उदा॰—"मेरे हाथ खुजलाते हैं।" (अ॰)। (शकु॰)। "उसका बदन खुजलाकर उसकी सेवा करने में उसने कोई कसर नहीं की।" (स॰)। (रघु॰)। "खेल-तमाशे की चीज़ें देखकर भोले भाले आदमियों का जी ललचाता है।" (स॰)। (परी॰)। "ब्राइट अपने असबाब की खरीदारी के लिये मदनमोहन को ललचाता है।" (स॰)। (तथा)। "बूँद बूँद करके तालाब भरता है।" (अ॰)। (कहा॰)। "प्यारी ने आँखें भरके कहा।" (स॰)। (शकु॰)। इनको उभय-विध धातु कहते हैं।

१९३—जब सकर्मक क्रिया के व्यापार का फल किसी विशेष पदार्थ पर न पड़कर सभी पदार्थों पर पड़ता है तब उसका कर्म प्रकट करने की आवश्यकता नहीं होती; जैसे "ईश्वर की कृपा से बहरा सुनता है और गूंगा बोलता है।" "इस पाठशाला में कितने लड़के पढ़ते हैं?"

१९४—कुछ अकर्मक धातु ऐसे हैं जिनका आशय कभी कभी अकेले कर्त्ता से पूर्णतया प्रकट नहीं होता। कर्त्ता के विषय में पूर्ण विधान होने के लिए इन धातुओं के साथ कोई संज्ञा या विशे-

१०