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“सौ एक" का अर्थ “सौ के लगभग" है; परंतु “एक सौ एक" का अंर्थ "सौ और एक" है। अनिश्चय अथवा अनादर के अर्थ में "ठो" जोड़ा जाता है; जैसे दोठो रोटियाँ, पचासठो आदमी ।

[सूचना--कवता में "एक" के बदले बहुधा ‘क’ जोड़ा जाता है, जैसे, चलो छ-सातक हाथ, "दिन हैक ते” । ( सत०)।]

( आ ) एक के अनिश्चय के लिये उसके साथ आद या आध लगाते हैं ; जैसे एक आद टोपी, एक-आध कवित्त । एक और आद ( आव ) में वहुधा सधि भी हो जाती है; जैसे, एकाद, एकाध ।

( इ ) अनिश्चय के लिए कोई भी दो पूर्णांक-बोधक विशेषण साथ साथ आते हैं, जैसे, “दो-चार दिन में," “दस-बीस रुपये," “सौ-दो-सौ आदमी," इत्यादि ।

“डेढ़ दो," “अढ़ाई-तीन" आदि भी बोलते हैं । "उन्नीस-बीस" कहने से कुछ कमी समझी जाती है; जैसे, ‘बीमारी अब उन्नीस- बीस है" । “तीन-पाँच" का अर्थ “लड़ाई" है और “तीन-तेरह" का अर्थ "तितर-बितर है ।।

( ई ) “बीस", “पचास", "सैकड़ा", "हजार", "लाख" और "करोड़" में ओं जोड़ने से अनिश्चय का बोध होता है, जैसे “बीसो" आदमी”, “पंचासों घर", "सैकड़ों रुपये","हजारों बरस" “करोड़ों पंडित", इत्यादि ।

[ सूचना---एक लेखक हिंदी “करोड़” शब्द के साथ “ओ” के बदले फारसी की "हा” प्रत्यय जोड़कर "करोइहा" लिखते हैं, जो अशुद्ध है । ]

१८०-क्रम-वाचक विशेषण से किसी वस्तु की क्रमानुसार गणना का बोध होता है; जैसे, पहला, दूसरा, पाँचवाँ, बीसवाँ, इत्यादि ।

(अ) क्रम-वाचक विशेषण पूर्णक-बोधक विशेषणो से बनते हैं ।