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( अ ) कभी कभी विशेषण अकेला आता है और उसका लुप्त विशेष्य अनुमान से समझ लिया जाता है; जैसे---"महाराज जी ने खटिया पर लंबी तानी ।" ( शिव० ) । “बापुरे बटोही पर बड़ी कड़ी बीती ।” ( ठेठ० )। “जिसके समक्ष न एक भी विजयी सिकन्दर की चली ।" ( भारत० ) ।

( ३ ) संख्यावाचक विशेषण।

१६४--संख्यावाचक विशेषण के मुख्य तीन भेद हैं--(१) निश्चित संख्यावाचक, (२) अनिश्चित संख्यावाचक और(३) परिणामबोधक।

( १ ) निश्चितसंख्या-वाचक विशेषण ।

१६५–निश्चित संख्यावाचक विशेषणो से वस्तुओं की निश्चित संख्या का बोध होता है; जैसे, एक लड़का, पच्चीस रुपये, दसवाँ भाग, दूना मोल, पाँचों इंद्रियाँ, हर आदमी, इत्यादि।

१६६-निश्चित संख्या-वाचक विशेषणों के पाँच भेद हैं-(१) गणनावाचक, (२) क्रमवाचक, (३) आवृत्तिवाचक, (४) समुदाय-वाचक और ( ५ ) प्रत्येक बोधक ।

१६७--गणनावाचक विशेषणों के दो भेद हैं-

( अ ) पूणांक-बोधक ; जैसे, एक, दो, चार, सौ, हज़ार ।

( आ ) अपूर्णांक-बोधक; जैसे, पाव, आधा, पौन, सवा ।

( अ ) पूर्णांक-वेधक ।।

१६८---पूर्णांक-बोधक विशेषण दो प्रकार से लिखे जाते हैं -(१) शब्दों में, (२) अंकों में । बड़ी बड़ी संख्याएँ अंकों में लिखी जाती है; परंतु छोटी छोटी संख्याएँ और अनिश्चित बड़ी संख्याएँ बहुधा शब्दों में लिखी जाती हैं। तिथि और संवत् की अंकों ही में लिखते हैं। उदा०--"सन् १६०० तक तोले भर सोने की दस तोले चॉदी मिलती थी । सन् १७०० से अर्थात् सौ बरस बाद ताले भर सेाने की चौदह तोले मिलने लगी ।" ( इति० )। “सात वर्ष के अंदर १२ करोड