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( ई ) “जैसा का तैसा"—यह विशेषण-वाक्याश “पूर्ववत्" के अर्थ में आता है, जैसे, “वे जैसे के तैसे बने रहे ।"

( २ ) यौगिक प्रश्न-वाचक ( सार्वनामिक ) विशेषण ( कैसा और कितना ) नीचे लिखे अर्थों में आते हैं-

( अ ) आश्चर्य मे, जैसे “मनुष्य कितना धन देगा और याचक कितना लेगे ।" (सत्य० ) । “विद्या पाने पर कैसा आनंद होता है ।"

( आ ) “ही" ( भी ) के साथ अनिश्चय के अर्थ में, जैसे, “स्त्री कैसी ही सुशीलता से रहे, फिर भी लेाग चबाव करते हैं ।" ( शकु० ) । "( वह ) कितना भी दे, पर सतोष नहीं होता ।" ( सत्य० ) ।

१५४---परिमाणवाचक सर्वनामिक विशेषण बहुवचन में संख्यावाचक होते हैं, जैसे, "इतने गुणज्ञ और रसिक लेाग एकत्र हैं । ( सत्य० )। "मेरे जितने प्रजा-जन हैं उनमें से किसीको अकाल मृत्यु नहीं आती ।” ( रघु० ) ।

( अ ) “कितने ही का प्रयोग "कई" के अर्थ में होता है, जैसे, "पृथ्वी के कितनेही अश धीरे धीरे उठते जाते हैं।"(सर०)। “कितने" के साथ कभी कभी “एक" जोड़ा जाता है, जैसे, “कितने एक दिन पीछे फिर जरासंघ उतनी ही सेना ले चढ़ आया ।" ( प्रेम० ) ।

१५५----यौगिक सार्वनामिक विशेषण कभी कभी क्रिया-विशे-षण होते हैं, जैसे, "तू मरने से इतना क्यों डरता है ?" “वैदिक लोग कितना भी अच्छा लिखें तो भी उनके अक्षर अच्छे नहीं हाते ।” (मुद्रा०) । "मुनि ऐसे क्रोधी हैं कि बिना दक्षिणा मिले शाप देने के तैयार होंगे ।” ( सत्यः )। “मृग-छौने कैसे निधड़क चर रहे हैं ।" ( शकु० ) ।