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( सरो० ) । "सिपाही वहाँ क्या जा रहा है ।" इन वाक्यों में "क्या” का अर्थ "अवश्य" वा “निस्संदेह" है।

( ए ) बहुत्व वा आश्चर्य में "क्या" की द्विरुक्ति होती है; जैसे, "विष देनेवाले लोगों ने क्या क्या किया ?" ( मुद्रा० ) । "मैं क्या क्या कहूँ !"

( ऐ ) क्या क्या । इन दुहरे शब्दों का प्रयोग समुच्चय-बोधक के समान होता है, जैसे, "क्या मनुष्य और क्या जीवजंतु, मैंने अपना सारा जन्म इन्हीका भला करने में गंवाया ।" ( गुटका० ) । ( अं०-२४४ )।

१३९-दशांतर सूचित करने के लिए "क्या से क्या" आता है, जैसे, “हम आज क्या से क्या हुए ।" ( भारत० ) ।

१४०--पुरुषवाचक, निजवाचक और निश्चयवाचक सर्वनामों में अवधारण के लिए “ही” “ही" वा "ई" प्रत्यय जोड़ते हैं, जैसे, मैं = मैंही, तू = तूही ; हम = हमी , तुम = तुम्ही ; आप = आपही, वह = वही , सो = सोई, यह = यही ; वे = वेही ; ये = यही ।

(क) अनिश्चय-वाचक सर्वनामों में "भी" अव्यय जोड़ा जाता है, जैसे, "कोई भी," “कुछ भी ।"

[ टी--हिंदी के भिन्न भिन्न व्याकरणों में सर्वनामों की संख्या और वर्गकिरण के संबंध में बहुत कुछ मत-भेद है । हिंदी के जो व्याकरण (ऐथरिगटन, कैलारी, ग्रीब्ज़, आदि) अंगरेज विद्वानों ने लिखे है और जिनकी सहायता प्रायः सभी हिंदी व्याकरण में पाई जाती है उनका उल्लेख करने की यहा अवश्यकता नहीं है; क्योंकि किसी भी भाषा के संबंध में केवल वही लोग प्रमाण माने जा सकते है जिनकी वह भाषा है, चाहे उन्होंने अपनी भाषा का व्याकरण विदेशियों ही की सहायता से सीखा वा लिखा हो। इसके सिवा यह व्याकरण हिंदी में लिखा गया है। इसलिए हमें केवल हिंदी में लिखे हुए व्याकरणों पर विचार करना चाहिए, यद्यपि उनमे भी कुछ ऐसे हैं जिनके