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भला आपने इसकी शांति का भी कुछ उपाय किया है?" ( सत्य० )। “तपस्वी हे पुरुकुलदीपक; आपको यही उचित है।" ( शकु० )।

(आ) बराबरवाले और अपने से कुछ छोटे दरजे के मनुष्य के लिए “तुम” के बदले बहुधा “आप” कहने की प्रथा है; जैसे, “इं०--भला आप उदार वा महाशय किसे कहते हैं ?’’ ( सत्य० ) ।"जब आप पूरी बात ही न सुनें तो मैं क्या जवाब दू"। (परी०)।

(इ) आदर के साथ बहुत्व के बोध के लिए “आप” के साथ बहुधा ‘लोग' लगा देते हैं, जैसे “ह०-आप लोग मेरे सिर-ऑखों पर हैं।" ( सत्य०)। इस विषय में आप लोगोंकी क्या राय है ?"

(ई) “आप” शब्द की अपेक्षा अधिक आदर सूचित करने के लिए बड़े पदाधिकारियों के प्रति श्रीमान्, महाराज, सरकार, हुजूर आदि शब्दों का प्रयोग होता है, जैसे, “सार०—मैं रास खींचता हूँ । महाराज उतर ले । (शकु०) । “मुझे श्रीमान के दर्शनों की लालसा थी सो आज पूरी हुई ।” “जो हुजूर की राय सो मेरी राय ।"

स्त्रियों के प्रति अतिशय आदर प्रदर्शित करने के लिए बहुधा “श्रीमती”, “देवी", आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जैसे-“तब से श्रीमती के शिक्षा-क्रम में विन्घ पड़ने लगा ।” ( हि० को०)

[सूचना–जहाँ “आप” को प्रयोग होना चाहिये वहा "तुम” या “हुजूर" कहना और जहा “तुम" कहना चाहिये वहाँ “आप” या “तू” कहना अनुचित हैं, क्योंकि इससे क्षोता का अपमान होता है।]

एक ही प्रसंग में “आप” और “तुम', “महाराज" और “आप” कहना असंगत है, जैसे, 'जिस बात की चिंता महाराज को है सो कभी न हुई होगी, क्योंकि तपोवन के विघ्न तो केवल आपके