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(इ) आदर के लिए 'तुम' के बदले ‘आप’ आता है।( अं०-१२३ ) १२१--वह–अन्यपुरुष ( एकवचन )।

( यह, जो, कोई, कौन, इत्यादि सब सर्वनाम और सब संज्ञाएँ अन्यपुरुष हैं। यहाँ अन्यपुरुष के उदाहरण के लिए केवल 'वह' लिया गया है।)

हिंदी में आदर के लिए बहुधा बहुवचन सर्वनामों का प्रयोग किया जाता है। आदर का विचार छोड़कर 'वह' का प्रयोग नीचे लिखे अर्थों में होता है-

(अ) किसी एक प्राणी, पदार्थ वा धर्म के विषय में बोलने के लिए,जैसे, “ना०—निस्संदेह हरिश्चंद्र महाशय है। उसके आशय बहुत उदार हैं।” ( सत्य० )। "जैसी दुर्दशा उसकी हुई वहसब को विदित है।” (गुटका०)।

(आ) बड़े दरजे के आदमी के विषय में तिरस्कार दिखाने के लिए, जैसे, "वह ( श्रीकृष्ण ) तो गॅवार ग्वाल है।” (प्रेम०)। "इ०-राजा हरिश्चंद्र का प्रसंग निकला था सो उन्होंने उसकी बड़ी स्तुति की ।" ( सत्य॰) ।

(इ) आदर और बहुत्व के लिए (अं०-१२२)।

१२२--वे--अन्यपुरुष ( बहुवचन )। कोई कोई इसे “वह लिखते हैं। कवायद-उर्दू में इसका रूप "वै" लिखा है जिससे यह अनुमान नहीं होता कि इसका प्रयोग उर्दू की नकल हैं। पुस्तकों में भी बहुधा "वे" पाया जाता है। इस लिए बहुवचन का शुद्ध रूप "वे" है, “वह नहीं ।

(अ) एक से अधिक प्राणियों, पदार्थो वा धर्मों के विषय में बोलने के लिए "वै" -(वा "वह")-) आता है; जैसे, “लड़की तो रघु-वंशियों के भी होती है; पर वे जिलाते -कदापि नहीं ।” (गुटका०)। "ऐसी बातें वे हैं।" ( स्वा० )। "वह सौदागर