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लिए आपके। ऐसा दोहरा व्याकरण बनाने की आवश्यकता हुई। इसी समय भारतेंदु हरिश्चंद्रजी ने बच्चों के लिए एक छोटा सा हिंदी व्याकरण लिखकर इस विषय की उपयोगिता और आवश्यकता सिद्ध कर दी ।

इसके पीछे पादरी एथरिंगटन साहब का प्रसिद्ध व्याकरण "भाषा भास्कर" प्रकाशित हुआ जिसकी सत्ता ४० वर्ष से आज तक एक सी अटल बनी हुई है। अधिकांश मे दूषित होने पर भी इस पुस्तक के आधार और अनुकरण पर हिंदी के कई छोटे-मोटे व्याकरण बने और बनते जाते हैं। यह पुस्तक अँगरेजी ढंग पर लिखी गई है और जिन पुस्तकों में इसका आधार पाया जाता है उनमें भी इसका ढंग लिया गया है। हिंदी में यह अँगरेजी-प्रणाली इतनी प्रिय हो गई है कि इसे छोड़ने का पूरा प्रयत्न आज तक नहीं किया गया। मराठी, गुजराती, बँगला, आदि भाषाओ के व्याकरणों में भी बहुधा इसी प्रणाली का अनुकरण पाया जाता है।

इधर गत २५ वर्षों के भीतर हिदी के छोटे-मोटे कई एक व्याकरण छपे हैं जिनमे विशेष उल्लेख-योग्य पं० केशवराम-भट्ट-कृत "हिंदी-व्याकरण", ठाकुर रामचरणसिह-कृत ‘‘भापा-प्रभाकर", पं० रामावतार शम्मी का “हिंदी-व्याकरण", पं० विश्वेश्वरदत्त शर्मा को “भाषा-तत्व-प्रकाश" और पं० रामदहिन मिश्र का प्रवेशिका-हिंदी-व्याकरण है। इन वैयाकरणो में किसी ने प्रायः देशी, किसी ने पूर्णतया विदेशी और किसी ने मिश्रित प्रणाली का अनुसरण किया है। पं० गोविंदनारायण मिश्र ने “विभक्ति-विवार" लिखकर हिंदी-विभक्तियों की व्युत्पत्ति के विपय में गवेषणा-पूर्ण समालोचना की है और हिंदो-व्याकरण के इतिहास में एक नवीनता का समावेश किया है!

हमने अपने व्याकरण में पूर्वोक्त प्रायः सभी पुस्तकों के अधि-काश विवदमान विपयों की, यथा-स्थान, कुछ चर्चा और परीक्षा की