८२ इषुक-दृष्ट रेखा, दायरेके बीचको सतर। ४ सामवेदविहित यज्ञ | इषुवल (वै० त्रि०) वाणका बल रखनेवाला, जिसका विशेष। तौरको ताकत हो। इधुक (सं० त्रि०) वाण सदृश, तोरके मानिन्द। | इषुभृत् ( स० वि०) इषु-भृ-क्किए । वाणधारी, जो इधुका (स. स्त्री०) वाण, तोर । तौर लिये हो। इछुकामशमो (सं० स्त्रो०) इषौ कामः इषुकामः इषुमत् (वै० त्रि०) इषु अस्त्यर्थे प्राशस्त्ये मतप, मस्य स शस्यते यत्र, इषुकाम-शम अधिकरणे धञ्-डी । च वः। प्रशस्त वाणधारी, तोरन्दाज । ग्रामविशेष, एक बसती। इषुमात्र (सं०वि०) इषुः प्रमाणमस्य, इषु-मावच् । सुषुकार (सं० पु०) इषु करोतीति, इषु-क-अण, प्रमाणे इयमजदघ्नमावच: । पा ५।२।३७। १ वाणप्रमाण, तौरके उप. समा। वाण बनानेवाला, जो शख स तोर बराबर, जो तीन फीट हो। (अव्य०) २ वाणके तैयार करता हो। प्रमाण पर्यन्त, तौरके टप्पं तक। (पु.) ३ ऋग्वदि- इषुक्त् (सं० पु० ) इषु-क-क्विय् । कर्मकार, लोहार, सोका कुण्ड। तौर तैयार करनेवाला। इषुमान्, इषुमत् देखो। वृक्षगोलक (सं० पु.) कोकिलाक्ष वृक्ष, तालमखानेका| इषुविक्षेप (सं० पु.) वाण मारनेका स्थान. तौर पेड। छोड़ने को जगह। १५. हस्त परिमाण-विशिष्ट उषुधर (सं० पु०) इघु--अच, ६-तत् वा उप-तत्।। प्रदेशको इस नामसे पुकारते हैं। वाणधारी, तोरन्दाज़ । इषुभृत् प्रभृति शब्दों का अर्थ इषुस्त्रिकाण्डा ( स० स्त्री०) मृगशिरा नक्षत्रका तारा- भी वाणधारी ही है। मण्डल। इसमें तीन तारे होते हैं। इधुधि (सं० पु-स्त्री.) इषु-धा अधिकरणे कि। इषुहस्त (सं०त्रि.) वाण हाथमें लिये हुया, जिसके वाणाधार, तूण, तरकश। हाथमें तलवार रहे। इषुधिमत् (वै० त्रि) तूणयुक्त, तरकश रखनेवाला । इषपल (सं० पु०) अग्नास्त्र विशेष, एक तोप। यह इषुधी (हिं.) इषुधि देखो। . दुर्गके हारपर रहता और प्रस्तरादि विक्षेप करता है। इषुध्या (वै० स्त्री०) इषुधि कण्डादित्वात् यक्-अ- इषेत्वाक (सं० पु०) इषका इति अस्ति यस्मिन्, टाप्। प्रार्थना, प्रज। इषोत्वा-वुन्। गोषदादिभयो छन् । पा ५।२६२ । इषेत्वा शब्द- इधुध्यु (वै० वि०) १ प्रार्थी, अर्ज लगानेवाला। युक्त अनुवाक्य वा अध्याय । यजुर्वेदके प्रथम अध्यायको २गमनशील, जानेवाला। (सायप) इस नामसे पुकारते हैं। इषुप (सं० पु०) क्षु-पा-क, उप-तत् । असुरविशेष । इष्कर्ट (वै. त्रि.) निस-क-टच । निशष्दो दालमिति। यही असुर अंशरूपसे अवतीर्ण हो नग्नजित नामक प्रातिशाख्य सूत्रेण नलोपः। निष्कर्ता, निष्पादनकारी, राजा बना था। बनानेवाला। इषुपत्रिका, इषुपत्रौ देखो। | इष्कृति (वै० स्त्री० ) निष-क-क्तिच् इष्कट वत् नलोपः। इषुपत्री (सं० स्त्री०) अमूला, ईश्वरमूल। जननी, धात्री, मा, धाय । इषुपथ (सं० पु.) वाणका पथ, तौरका टप्पा। इष्ट (सं० त्रि०) यज वा इष कर्मणि ता । १ अभि- इषुपुडा, इषुपत्रिका देखो। लषित, ख़ाहिश किया हुअा। २ प्रिय, प्यारा । इषुपुडिका (सं. स्त्री०) शरपुडा, सरफोंका। । ३ पूजित, परस्तिश किया हुआ। ४ हित, फायदेमन्द। इघुपुष्या (सं• स्त्री०) इषुरिव पुष्य यस्याः; दूर- ५ अन्वेषण किया हुआ, जो ढढा गया हो। ६ अभि- विसारिगन्धत्वात् बहुव्रो । शरपुष्पा वृक्ष। इस वृक्षके मत, खुशगवार। ७ ईप्सित, पसन्द किया हुपा। युष्यका गन्ध वाणको तरह बहुत दूरतक पहुंचता है।। सबल,.जोरदार। (लो०) भावे त। १०.यज्ञादि-
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/८३
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