पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/८

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इक्षुपत्रक-इक्षु वल्ली


इक्षुपत्रक, इक्षुपत्र देखो।
इक्षुपत्रा (सं० स्त्री०) इक्षुपत्र देखो।
इक्षुपत्री (सं० स्त्री०)१ वचा, वच। २ शुक्ल भूमि-कुष्माण्ड, सफ़ेद भुयिंकुम्हड़ा।
इक्षुपर्णी, इक्षुपत्री देखो।
इक्षुपाक (सं० पु०) इक्षोः पाकः, ६-तत्। गुड़।
इक्षुपुङ्खा (सं० स्त्री०) शरपुङ्खा, सरफोंका।
इक्षुप्र (स० पु०) इक्षुरिव पूर्यते इक्षु पृषोदरादित्वात्
कः। शस्तृण, रामशर।
इक्षुप्रमेह, इक्षुमेह देखो।
इक्षुबालिका (सं० स्त्री० ) इक्षोर्बाल इव बाल: केशः शीर्षस्थपत्रादिर्यस्याः। १ इक्षुतुल्या, एक ऊख। २ कोकिलाक्ष, तालमखाना। ३ काशतृण, कांस।
'इक्षुभक्षिका (सं० स्त्री०) इक्षुरसनिष्काषणयन्त्र,
ऊख पेरनेका कोल्हू।
इक्षुमती (सं० स्त्री०) इक्षुस्तद्वद्रसो विद्यतेऽस्यां
नद्याम्, मतुप। कुरुक्षेत्रप्रवाहित नदीविशेष। इसी नदीके तीर साङ्काश्या नगरी रही। (रामायण २०७०।३)

इक्षुमद्य (सं० ल्की०) इक्षुविकारज मद्य, ऊख के रससे बनी शराब। इक्षुरस, मरिच, वदर, तथा दधि और अन्त को लवण मिलाने से यह बनता है।

(वैद्यकनिघण्टु)

इक्षुमालवी, इक्षुदा देखो।
इक्षुमालिनी, इक्षुदा देखो।
इक्षुमूल (सं० ल्की०) इक्षोर्मूलं ग्रन्थिरिव मूलं यस्य १ इक्षुविशेष, किसी क़िस्म की ऊख। २ इक्षुका मूल, ऊखकी जड़। इक्षुमेद (सं० पु०) इक्षुवाटिका, ऊखका बाग़।
इक्षुमेह (सं० पु०) इक्षुरसतुल्यो मेहा, मध्यपदलोपी
कर्मधा०। कफज मूत्रदोष, इक्षुरस-जैसे मूत्रका होना। इक्षुमेह में मूत्रके साथ मधु गिरता है। इक्षुमेही के मूत्रपर मक्खी बैठती और चीटी चढ़ती है। दिवानिद्रा, व्यायाम तथा आलस्यमें आसक्त रहने और शीतल, स्निग्ध, मधुर एवं मद्य-द्रव्य-युक्त अन्न खाने से यह रोग लग जाता है। सुश्रुत ने इक्षुमेहपर जरन्ती कषाय के सेवन की व्यवस्था बतायी है। मेह देखो।


इक्षुमेहिन् (सं० त्रि०) इक्षमेह-युक्त, सिलसिल
बौलका मरीज़, जिसके छुलक-मुत्तीका रोग रहे।
इक्षुयन्त्र (सं. ल्की०) इक्षोः निष्पीड़न यन्त्रम्, शाक-तत्। ऊखके रसको निकालने का कोल्हू।
इक्षुयोनि (सं.पु.) इक्षोर्यांनिः जन्म यस्मात्।
पुण्ड्रेक्षु, पौंड़ा। २ करङ्कशालि, किसी किस्म की ऊख।
इक्षुर (सं० पु०) इक्षुं तद्वद्रसं राति, इक्षु-रा-क।
१ कोकिलाक्ष, तालमखाना। २ इक्षु, ऊख। ३ गोक्षु-
रक, गोखुरू। ४ काशतृण, कांस। ५ शरतृण, राम-
शर। ६ कृष्णेक्षु, काली ऊख।
इक्षुरक,इक्षुर देखो।
इक्षुरबीज (सं० ल्की०) कोकिलाक्ष बीज, तालमखानेका तुखम।
इक्षुरस (सं० पु०) इक्षोरस इव रसो यस्य सः।
१काशतृण, कांस। ६-तत्। २ इक्षुका रस, ऊखका
निचोड़। ३ गुड़।
इक्षुरसक्काथ (सं० पु०) इक्षुरसस्य क्काथः, ६-तत्।
इक्षुगुड़ ऊखका गुड़।
इक्षुरसवल्लरी (सं० त्रि०) क्षीरविदारी, सफ़ेद विलायोकन्द।
इक्षुरसविकार ( सं० पु०) इक्षुगुड़, ऊखका गुड़। इक्षुरसशुक्त (सं० ल्को०) तैल, कन्द, शाक और फल पड़नेसे खट्टा हो जानेवाला इक्षुरस, सिरका। यह गुरु और अनभिस्यन्दि होता है।(सुश्रुत)
इक्षुरसोद (सं० पु०) इक्षुरसवत् मिष्टमुदकं यस्य
बहुब्री० । उदकभब्दस्योदादेशश्च। इक्षसमुद्र, शर्बती
बहर। पुराणानुसार लवण, इक्ष, सुरा, सर्पि, दधि, दुग्ध और जल सात वस्तु का समुद्र होता है।
इक्षुरालिका, इक्षालिका देखो।
इक्षुला, इक्षुदा देखो।
इक्षुवाटिका (सं० स्त्री०) इक्षुयोनि देखो।
इक्षुवण (सं० ल्को०) इक्षुका वन, ऊखका जङ्गल।
इक्षुवल्लकी, इक्षुवल्ली देखो।
इक्षुवल्लरी, इक्षुवल्ली देखो।
इक्षुवल्ली (सं० स्त्री०) इक्षुरिव सुखाटु वल्ली वल्लरी वा। कृष्णक्षीरविदारी बिलायीकन्द।