कपालेश्वर-कपिञ्चख ०६३ धीवरके औरस और ब्राह्मण-कन्याके गर्भसे उत्पन्न ! कपिकच्छफल (सं० ली.) शुकशिम्बोका वोत्र, है। (पराशरपद्धवि) हिन्दी में इसे कपरिया कहते हैं। केवांचका तुखूम। ३योगिविशेष। कपिकच्छ फलोपमा (सं. स्त्रो०) कपिकच्छ.फलख ___“कपाली विन्दुनाथश्च काकचस्पीश्वरावयः ।" (हठयोगदौपिका) | उपमा यन, बहुव्री.। जतुकालता, पापड़ी। ४ उपासकसम्पदायविशेष । कापालिक देखो। (वि०) कपिकच्छा (सं० स्त्री०) कपिभ्योऽपि कच्छ कण्ड ५ कपालविशिष्ट, खोपड़ीवाला। ६ भाग्यवान्, खुश- राति ददाति, कपि-कच्छु-रा-क। शकशिम्बी, केवांच। बखत। (स्त्री.) विडङ्गा। कपिकन्दुक (सं.को.) कपि-कदि-उक तो लोपः, कपालेश्वर (स.पु.) १शिव । २ उड़ीसे प्रान्तका एक प्राचीन ग्राम। यह महानदीके उत्तरकूल कटकसे | खोपड़ा। थोड़ी दूर अवस्थित है। यहां कपालेश्वर नामक कपिका (सं० स्त्रो.) कपिर्वराह इव काययति एक पुरातन दुर्ग खड़ा है। प्रकाशते वष्णत्वात्, कपि-के-क-टाए। १ नोलसिन्दुवार कपास (हिं.) कार्पास देखो। वृक्ष, नोला सभाल। २ पहच, मदारका पेड़। कपासी (हिं० वि०) १ कार्पासतुल्य वर्णविशिष्ट, कपिकेतन (सं• पु०) कपिहनुमान् केतने यस्त्र, कपासका रङ्ग रखनेवाला, जो रङ्गमें कपासको तरह | बहुव्रौ । १ पजन । “खान्तपूर्वमिदं वाक्यमब्रवीत् कपिकतनः।" देख पड़ता हो। (पु.) २ वर्णविशेष, एक रंग। (भारत, पाव० ८२ १०) २ कपिचिह्नित ध्वज, जिस यह रंग कपासके फूलसे मिलता पौर हलका पोला | निशान्पे बन्दरको तसवीर रहे। रहता है। हरिद्रा, पलाशपुष्य एवं शुष्क पाम्रफलके कपिकेतु, कपिकतम देखो। संयोगसे इसे बनाते हैं। कहीं कहीं हरसिंगारसे कपिकोलि (स.पु..) कपीनां प्रियः कोलि:, मध्य- भी यह तैयार होता है। कपासी रंग देखने में बहुत पदलो शृगालकोलिका, किसी किस्का बर। सुहावना लगता है। कपिचूड़ (सं० पु०) कपिचड़ा देखो। (स्त्री० ) ३ वातामवृक्ष विशेष, बादामका एक कपिचूड़ा (सं० स्त्रो.) कपीनां चड़ाइव, उपमि। पेड़। इसे भोटिया कहते हैं। कपासोका प्राकार- प्रामातकक्ष, प्रामड़ेका पेड़। प्रकार समान रहता है। काष्ठ पाटल निकलता और | कपिचत (सं.पु.) कपीना चत इव तेषामति- • योठ तथा फलक बनाने में लगता है। फल भक्ष्य पदार्थ प्रियत्वात्। अश्वत्थमेद, किमो किस्का पोपल। है। कपासीको प्रायः लोग मोटिया-बादाम कहते हैं। पायातक, पामड़ा। कपि (स.पु०) कपि- नलोपश्च । कठिकम्पोनलोपश्च । कपिज (सं.पु.) कपितो जायते, कपि जन्-ड। ठण ४।१४३॥ १ वानर, बन्दर। २ हस्ती, हाथो। १ सिखर्क, शिखारस, लोबान। (वि.) २ वानर- ३.करत्रविशेष, किसो किस्मका करोंदा। ४ सितक, जात, बन्दरसे पैदा । शिलारस। यह एक गन्धद्रव्य है। ५ सूर्य, आफताब। कपिजविका (स स्तो.) .कपः वानरस्य जबा इव । ६ मधुसूदन । ७ पानातक, पामड़ा। ८ शुक- जका यस्याः, संज्ञायां कन्। तैलपिपोलिका, तिचट्टा । शिम्बी, केंवाच । वराह१.पिङ्गलवर्ण। ११.रता कपिचल (सं.पु.) कपिरिव जवते वेगेन गच्छति चन्दन । १२ पामलको। (त्रि०) १३ पिङ्गलवर्ण- | कं श्रुतिसुखदं पिवयति वा पृषोदरादित्वात्। १चातकपची, पपौहा। इसका मांस शोतस, मधुर युक्ता, भूरा। कपिकच्छ (स• स्त्री०) कपीनामपि कच्छ्यस्याः, और लघु होनेसे रक्तपित्त, रतनेमविकार एवं मन्द- बहुप्री। शकशिम्बी, केवांच, कौंछ, करेंच, बानरी, | वातविकारमें प्रशस्त है। (चक्रपाणिदध) कपिनखका - मक्रटी। |मांस वृष्य, रोचक और चटक्के मांससे शीतलहोता
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७६३
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