कन्धमहल-कन्यवान ७५३ शुद्र पर्वत चारो ओर खड़े हैं। ग्रामों की संख्या । है। इसी प्रकार वो भूमिखण्ड जिस सहखके प्रधान अति श्यल्प है। प्रति ग्रामके मध्य पर्वतमाला वा रहता, उसमें उसीका एकाधिपत्य ठहरता है। कन्धों में घन वनका व्यवधान पड़ता है। प्रदेशके समस्त | कोई राजा या नमीन्दार नहीं। भूमि करसे स्वतन्त्र भूभागमें कन्धजातिका एकाधिपत्य है। यह कहते है। प्रत्येक गाव अपनी अपनी जमीनका जमी- हैं:-किसी समय समस्त बौदराज्य अपने चतुःपाचस्व | न्दार है। उसके लिये किसी प्रकारका कर देना अन्यान्य राज्यादिके साथ हमारे अधीन रहा। कास- नहीं पड़ता। प्रत्येक ग्रामके प्रधान वा सरदार क्रमसे दूसरोंने वह समस्त जय किया। विजेतावोंके। भूमिके सर्वप्रकार संसवसे पृथक रहते हैं। वह निकट इन्होंने कभी अधीनता नहीं मानी। दसरोंने केवल दूसरे सोगोंके प्रतिनिधि वा मुखपावकी भांति ही न्यायसे इन्हें स्थानच्यत किया है। सुतरां बहुदिन पञ्चायतमें पहुंच जाते हैं। बीतते भी समस्त भुभागपर यह स्वत्वशून्य हो नहीं कन्धमइसमें एकखानपर कई यहख मिलनुस सकते। फिर यह बताते,-'मङ्गलपुरके अन्तर्गत घर बना वास करते हैं। इस प्रकार पक्षी बनता है। सबलेझ्या नामक जनपद ही हमारा प्रादि वासस्थान कई पल्लो मिलनसे ग्राम होता है। प्रत्येक ग्राम- रहा। क्रमशः विताड़ित होनेपर हम इतनी दूर वामौके चेवादि ग्रामको चारों ओर पड़ते हैं। इस पा पहुंचे हैं। समस्त भूखण्ड पर एक प्रधान रहते हैं। ___बन्धमहलने किसी समय बौद राज्यको वश्यता कन्यका (सं• स्त्री०) कन्या-कन् पूर्वखव। १ कुमारी, नहीं मानी। १८३६ ई०को अंगरेजोंने कन्धोंमें सड़की। स्मतियास्त्र में दशम वर्ष वयस्का कुमारीको नरबलि निवारण करनेके लिये बौदराजको वाध्य कन्यका कहते हैं,- किया था। उन्होंने स्वयं सम्यक् कृतकार्य न हो "बटवां भवेदगौरौ नववर्षा तु रोहिौ । या प्रदेश अंगरेजोंको सौंप दिया। अंगरेज कन्ध दशमे बन्धका पोका पत वर्ष रजसथा। (मनु) महल हाथ में ले केवल उक्त निष्ठ र प्रथा उठा शान्ति पाठको मौरी, नौको रोहिणी, दशको कन्धका रक्षा करते आये हैं। इस प्रदेशके लोग न तो और इससे अपरको कन्या रजस्खखा कहाती है। अंगरेजोको कोई कर देते और न अंगरेज हो उनसे २ एक परकीया नायिका। पित्रादिके अधीन रहनेसे कोई कर लेते हैं। एक थानेदार नियुक्त हैं। वह कन्यकाको परकीया कहते हैं। इसका समुदाय चेष्टा एकदल पलिसके सिपाही रख शान्तिरक्षा करते और | गुप्त रहती है। ३ घृतकुमारी, घोकुवार। कन्या. किसी प्रकार रक्तपात न होनेपर दृष्टि रखते हैं। बेटो। ५ दृष्टि, नजर। ६ कन्याराशि। बौदके राजा कन्धमहलके किसी विषय में हाथ नहीं कन्यकाचल (सं. को०) प्रलोभन, फुसलावा, बड़कोको लगाते। धोका देनेका काम। प्रधानतः यहां हरिद्रा उत्पन्न होती है। कन्ध- कन्यकालात (सं० पु.) कन्धकायां पनढ़ायां जातः । महलको भांति अच्छी हलदो कहीं देख नहीं पड़ती। १ अविवाहिता स्त्रोका गर्भजात, बेव्याही औरतके व्यवसायी हलदी लेनेको देशके पति अभ्यन्तर पर्यन्त | इमलसे पैदा हुवा। २ कर्ण। कुन्तीको पविवा- पहचते और पर्व तपर चढ़ते हैं। हितावस्थामें ही इनका जन्म हुवा था। व्यासदेव । इस प्रान्समें पाज भी कन्धों की प्राचीन रीतिनीति व्यास देखो। कन्चकापति (.पु.) कन्यकायाः पतिः, एतत् । चमती है। जो जाति जितनी भूमि बो सकती, वह उतनी ही भूमि अपने अधीन रखती है। फिर जो| बामाता, दामाद, बेटोका शौहर। गास्थ जिस भूमिको सपिचा पधिक दिनसे जोतता- | कन्यकुब (सं.की.) कन्याः कुबा यत्र। १ कान्व- बोता, बंधानुक्रामक इसपर उसीका अधिकार होता | कुन देश, कनौजियोंके रहनेका मुस्क। २ जनामढ़के Vol. III. 189
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