पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७४०

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कन्वजाति ०३९ पहुंचा लड़नेको प्रतिज्ञापर जागीर पाते हैं। कन्धों का समात्र-बन्धन-प्रत्येक एइस्वके मध्य प्राचीन यही उड़ीसमें मुसलमानोंके पाक्रमण-समय अपने वा ज्येष्ठ ही कर्ता होता है। पुवपोवादि सजन हो अपने राजाकी ओरसे लड़े थे। फिर तीसरी श्रेणौके उसके अनुगत रहते हैं। सभी एकाववर्ती होते हैं। कन्ध पराजित होते भी स्वाधीन भावसे मित्र-सामन्तको पितामही वा माता सबके लिये प्रवाक करती है। भांति रहा करते हैं। यह भी युद्ध के समय अपने पुत्रपौत्रादि पिता वा पितामहको जोवहशामें जो अपने मित्र राज्यको साहाय्य देते, किन्तु उसके कमाते, उसपर पिता वा पितामह ही अधिकार लिये कोई वेतन या जागीर नहीं लेते। म श्रेणोके पाते हैं। एक वयोद्भत बहुतसे ऐसे हो सहखों से कन्ध 'भटिया' कहाते हैं। यह पर्वतको निम्न शाखा बनती है। यहखों के कर्तावों से कोई भूमिमें रहते हैं। श्य श्रेणीके कन्ध 'बनिया' नामसे व्यक्ति प्रत्येक भाखाका अध्यक्ष निर्वाचित होता है। ख्यात हैं। यह पर्वतके ऊपर ही रहते हैं। फिर इसी प्रकार बहुतसे पध्यक्षों में एक मण्डन, बहुत से श्य श्रणौके कन्धोंका कोई स्वतन्त्र नाम नहीं। मण्डला में एक नायक, बहुतसे नायकॉमें एक सरदार एतद्भित्र वासस्थानके भेदसे भी इनका भिन्न-भिन्न और बहुतसे सरदारों में एक विसाई ठहराया जाता नाम रखा जाता है। पर्वतपर रहनेवाले 'मालिया है। यह सकल पद वंशानुक्रमिक धारावाहिकरूपसे कोडणा', समतल भूमिपर रहनेवाले 'सासी कोइङ्गा'। । निर्दिष्ट रहते भो यदि कोई अपने पदके उपयुक गुण और महानदीके दक्षिण रहनेवाले केवल 'कोइङ्गा नहीं रखता, तो उसे तत्क्षणात् निकाल देना पड़ता कहाते हैं। तेलङ्गी इन्हें 'कटुल' या 'कवोनुल' कहते है। वंशके मध्य ज्येष्ठ पुत्र हो सामान्यतः इन सकन हैं। इस शब्द का अर्थ 'पहाड़ो लोग है। पदों का अधिकारी होता है। किन्तु उपयुक्त गुण ____ कन्धों की शासन प्रणाली-कन्ध अाजकल अंगरेजों के न रहनेसे उसका वातुष्प व उक्त पद पाता है। अधीन तो रहते, किन्तु वस्तुतः उनके शासनपर नहीं निर्वाचनके समय सबका मतामत लेना नहों पड़ता। कार्यको गति में सबको अपने से अकर्मण अधीन रखी है। इन लोगों में शासनके कार्यको न देख और उपयुक्त व्यक्तिके अनुगत रह चलना सुविधाको एक सुन्दर शृङ्खला है। कन्धों में वंशगत पड़ता है। जातिविभाग लगा रहता है। फिर प्रत्येक वशमें . इनका समाजबबन अति सुन्दर और दृढ़ है। शाखाभेद पड़ता और प्रत्येक शाखामें एक एक गृहस्थ अधिकांश सभ्य जातियों में ऐसो हडता देख नहीं को ले एक एक भाग चलता है। बहतसे गृहस्खोंको पड़ती। इनमें गुणका जेठा पादर और सम्मान है, मिलाकर एक ग्राम बनता है। प्रत्येक ग्राममें प्रायः वैसा सभ्यताभिमानो अनेकानेक जातियों में कहीं एक ही वशके लोग रहते हैं। इस वशको प्रत्येक नहों। कन्धजातिके पूर्वोत प्रधान व्यक्ति हो अपने शाखामें एक पध्यक्ष निर्धारित होता है। फिर अपने अधीनस्थ लोगों के वंशकर्ता, मजिष्ट्रेट और अध्यक्षोंमें जो व्यक्ति ज्येष्ठवंश-सम्भत रहता, वही पुरोहितका कार्य करते हैं। वंश और निर्वाचनको ग्रामका 'मण्डल' ठहरता है। इन्हों मण्डलको बोद प्रथाका उद्देश्य एकत्र मिलन सकन प्रधान पद- वियाँके लोगों को धार्मिक बना डालता है। कन्ध राज्यमें 'खोंड चिन्ताकेनेडी प्रदेशमें 'मांजी और प्रधान पदों पर बैठ जो कर्तब्ध कर्म करते, उसके लिये -गुमसर राज्यमें 'मुलिकों कहते हैं। इसी प्रकार कोई वेतन वा विशेष सुविधा नहीं रखते। विचारक, बहुससे ग्रामों का एक नायक होता है। फिर बहुतसे पुरोहित और शासकको केवल कुछ सम्मान मिल नायकों पर एक सरदार रहता और कितने ही सर- जाता है। प्रत्येक गहरखके संसारमें कर्ता हो प्रधान -दारों पर एक राजा-जैसा व्यक्ति अधिकार रखता है। रहता है। बाकी लोग समपदवीके गिने जाते राजाको "बिसाई' कहते हैं।