दूराचर-इरिमेद इराचर (सं० लो०) इरायां चरति, इरा-चर-ट।। हो जाती है। वहां इसकी धारा बहुत ही तीव्र बहती 'चरेष्ट । पा १२।१६। १ करका, ओला। चैत्र-वैशाख और पानी में घूम-घमकर लहर उठती है। भामोमें मासमें मेघ बरसनेसे प्रायः ओले पड़ते हैं। २ भूचर, जहां तापिङ्ग मिली है,वहां इसको अपूर्व शोभा खिलौ जमीन्का जानवर। ३ खेचर, पास्मानी लोग-जैसे है। मन्दालयसे थोड़ी दूर इरावदोके किनारे सब्जी देवता भूतप्रेतादि। ख ब ऊगती है। इसको उपत्यकामें चावलको कृषि को इराज (सं० पु०) इराया जायते, इरा-जन-ड। जाती हैं। मैदानमें प्रतिवर्ष बाढ़ पाती है। नदी ८०० कन्दर्प, काम। मोल लम्बी है। अकाकतान-तक तो इसका तल पथरीला इरादा (अ० पु०) १ इच्छा, मरजी। २ अभिप्राय, ! पड़ता, उसके बाद रेत तथा दलदल मिलता है। बारहो मतलब। ३ सङ्कल्प, कृस्द। ४ विचार, तजवीज । मास इसमें छोटे-छोटे जहाज चला करते हैं। वर्षामें ५ निर्दिष्ट स्थान, ठिकाना। ६ अर्थ, मुराद। रंगूनसे बड़े २ जहाज भी आते जाते हैं। रंगूनसे बासिन इरामुख ( स० क्लो०) १ असुरनगर विशेष । यह मेरुके और मन्दालयको सप्ताहमें दो बार जहाज छूटता है। निकट था। २ प्रदोष, सन्ध्या, शाम पड़नेका वक्त.। | इरावलिका, रिवेल्लिका देखो। इरावत् (सं० पु०) इरा विद्यतेऽत्र, इरा भूम्नि मतुप् इरिका ( स० स्त्री.) इरैव, इरा-कन् अत इत्वम् । मस्य च वः। १ समुद्र, बहर। २ मेघ, बादल ।। जल, पानी। ३ राजा, नवाब। ४ अजनके एक पुत्र। इन्होंने नाग-इरिकावन (सं० लो०) इरिका प्रधान वनम्, शाक- राजकी कन्या उलपीके गर्भ और अजुनके पोरसप्से तत् वा ६-तत्, णत्व' बाहुलकात्। विभाषौषधिवनस्पतिभ्यः । जन्म लिया था। अर्जुनसे क्रद्ध हो इरावान्को पिटव्य- पा ८४।५। जलके निकटस्थ बन, पानीके पासका ने छोड़ दिया, इसलिये ये जननी द्वारा नागलोक जङ्गल। होमें प्रतिपालित हुये थे। एक दिन अजुन नागलोक इरिकौल (सं० पु०) अकोलवृक्ष, ढेरेका पेड़। गये और इन्होंने उन्हें वह अपना सकल वृत्तान्त बताया। इरिण (सं० लो०) ऋ अतः किदिच इनन् । १ ऊपर पिताको आज्ञासे ये रणमें पहुंचे और पार्षशृङ्ग राक्षस भूमि, बञ्जर जमीन् । २ जलप्रवाह, नाला, कुवां। द्वारा मार डाले गये। ( त्रि.) ५ सुखद, जिससे ३ भूमिछिद्र, खन्दक। ४ मरुभूमि, रेगस्तान । आराम मिले। ६ खाद्य-सम्पन्न, जिसके पास खानका ५ वेदोक्त प्राचीन जनपद। पार्यावर्त देखो। सामान रहे। ७ आखासक, तसल्ली देनेवाला। इरिण्य (बै० त्रि.)१मरुभूमिसम्बन्धीय, रेगस्तानके इरावती (स'. स्त्री०) इरा वन तदस्या अस्ति, इरा मुताल्लिक। (लो०) २ऊपर क्षेत्र, बञ्जर खेत । मतुप् वत्व डोष्। १ नदी, दरया। २ नदीविशेष, | (सायण-कृत शतपथब्राह्मणभाष्य राश३) पञ्जाबका एक दरया। अब इसे रावो कहते हैं। इरिन् (वै० त्रि०) हरि कङ्कादित्वात् णिनि यलोपः । रावी देखो। ३ वटपत्री, पथरचटा। ४ रुद्रपत्नी। ५ ब्रह्म- १ प्रेरक, भेजनेवाला। 'दरी ईरीता प्रेरिता। (ऋगभाष्ये देशस्थ एक नदी। इरावदी देखो। सायण ५।८।३) २ ईर्थक, हसदी। इरावदी-ब्रह्मदेशको प्रधान नदी। यह ब्रह्मदेशके इरिमेद (सं० पु०) इरी व्याधिजनकतया ईर्थ कः पेगू और इरावदो विभागमें उत्तरसे दक्षिणको बहती मेदो निर्यासो यस्य, बहुव्री०। अरिमेद, विटखदिर । है। इसकी उत्पत्तिका स्थान अनिश्चित है। सम्भवतः | यह एक प्रकारका खैर होता और गुणमें कषाय इरावदी पतकोयो पर्वतको दक्षिण-घाटोसे निकली तथा उष्ण रहता है। इससे मुख एवं दन्तरोगका है। छोटो और बड़ी दो शाखा मिलकर यह नदी औषध बनता है और रक्त गिरना बन्द हो जाता है। बनी है। इरावदीमें कितनी ही नदी पा कर गिरती हैं। कण्ड, विष, श्लेष्मा, कमि, कुष्ठ और विषाक्त व्रणको मोगाङ्गके सङ्गमपर यह ५०से २५० मज तक चौड़ी | इरिमेद शीघ्र ही नष्ट कर देता है। Vol III. 19
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