पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७३१

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गोव गर्ग चतुर्वेदी कनौजिया पश्चिम-बांदे, दक्षिण-हमीरपुर और दक्षिण-| संस्कृत वासा सात दिन तक खड़ाजपर चढ़, जामा पश्चिम-टाव जितक रखते हैं। अपनी कुन पहन पोर पगड़ी बांध प्रश्ने व्यवहारियों के घर भिक्षा कारिकाके मतानुसार कनौजिये पर कुल में विभव है।। मांगने जाता है। स्त्रियां उसकी झाली मिठायोसे किन्तु इन्होंने साढ़े छह कुल मान रख है। भर दिया करती हैं। उपाधि कान्यकुलमें सबसे बड़ा गुण प्रतिग्रह न लेना गौतम अवस्थी है। लोग प्राण जाते भी दान दक्षिा लेना बुरा थाण्डिव मित्र, दीचित समझते हैं। इस बातको कई बार परीक्षा हो चुकी भारद्वाज शक्ल, त्रिवेदी, पाण्डेय है। कनौजियोंने दान में हजारों रुपये लेने से इनकार उपमन्यु पाठक, द्विवेदी किया है। इससे भिक्षुक कान्यकुम देख नहीं पड़ते। काश्यप त्रिवेदी, विपाठी ___ कनौजिये युद्ध करनेसे भी मुह नहीं मोड़ते। कास्तोय वाजपेयी पुरानी बात हम नहीं कहते। पात्र भी सरकारी फौजमें कान्यकुल ब्राह्मणोंको 'गायत्रो' नामक पत्रटन . फिर यह अवस्थ्यादि उपाधिधारो कनौजिये कई विद्यमान है। यह ख ब कसरत (व्यायाम ) करते प्रकारके होते हैं, जैसे प्रभाकरके अस्थो, खेचर के और अखाडमि लड़ते-भिड़ते हैं। बालक ८१. अवस्थी; झिगयांक मित्र. धोविरा मित्र; बामाके वर्ष का होते ही लंगोटा बांधने और डण्ड-बैठक सल, कनके शत; नागैके त्रिवेदी, खोरके पाण्डेय, मारने लगता है। लखनऊ वाजपेयी, काशीरामके वाजपयो, गोवर्धनके विद्यामें कान्य कुन अग्रसर न अधिक त्रिपाठी, दमाके त्रिपाठो, गोपालके त्रिपाठी, इत्यादि | पश्चादपद नहीं। कितने ही कान्यकुछ संस्कृत, इत्यादि। अरबो, फारसो, अंगरेजौ आदि प्रधान-प्रधान भाषावाका इनकी मर्यादा २० अंशों या विस्खोंमें विभक्त है। अच्छा ज्ञान रखते हैं। सोमेच्च एवं नीच कुलका विधान ऐसा है। उच्च २ सरवरिया-यह कनौजसे चल अयोध्या में जाकर कुलका कान्यकुछ नोच कुनवाले को अपनी कन्या दे रहे थे। अाजकल सरवरिया अधोयापान्त के बह- महीं सकता। फिर बराबरवासा पोतप्रोत सम्बन्ध रारच जिले, नेपालंके प्रान्त, काथी एवं प्रयागप्रदेश . चलता है। अपनी-अपनी मर्यादाकै अनुसार दहेज और दक्षिण बुदेलखण्ड में वास करते हैं। गारच. बंधा है। किन्तु जितना ही छोटा कान्य कुन रहता पुरमें यह पधिक मिनते और इनमें १८पर चलते हैं। और जिसने बड़े के साथ सम्बन्ध लगानेको चेष्टा अनेक लोग सरवरिया शब्दको ‘सरय पारीण' वा करता, उसना हो उसे अधिक धन दहेजमें देना | 'सरय पारिया का अपभ्रंश बताते हैं। प्रवाद है- राम रावणको मार पयोध्या आये पौर कान्य कुमसे कान्य कुनोंमें यज्ञोपवीत संस्कार सम्यक सम्पन्न | कुछ ब्राह्मण बोन्साये थे। वह ब्राह्मण पाकर सरय के होने पर व्यवहारो टिकावन करने पाते हैं। संस्कृत | परपार रहे। इमोसे उनका नाम सरय पारीण बालकके मस्तक पर रोचनाक्षत लगा अपने-अपने या सरवरिया पड़ गया। इनमें भी भित्र गोव और 'व्यवहारके प्रमुमार सामने रखो चासोमें वह रुपया भिव उपाधि विद्यमान है। डालते। मौका नाम टिकायम है। फिर संमत मीब उपाधि बालकके सत्त्वावधायक व्यवहारियोको मिठायो बाटते गर्ग पाण्डेय (इतिय) । संस्कार सोते समय भी शत-पान चबा करता गौतम .. .. हिवेदी (कञ्चजिया) है। बाजे-गाजी धूम धड़ाकेसे बजते हैं। फिर, साहिब पाख्य (विफला) पड़ता है।