पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७१५

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०१४ पायके साथ देना चाहा था। किन्तु पण्डितवर | इस बार इन्हें देशका दोष सुधारने को मन्चोके पदपर कनफची कहने लगे-'विन्न लोग उपदेश देते पौर | बैठाया। कनफचौने जिसको चाहमें ध्यान लगाया, जबतक उसके अनुसार उपदेश सुननेवाले कार्य नहीं उसोको पाया था। राज्यके सम्बन्ध में स्थिर किये करते, तबतक उनका दान किसोप्रकार नहीं लेते। हुये नियम और देशके लोगोंका चरित्र सुधारनेको हमने राजाको उपदेश दिया है सही, किन्तु उन्होंने स्थिर किये हुये उपाय कार्य में परिणत करनेका सुयोग न तो अभीतक उसके अनुसार कार्य किया और न देख यह महा पाहादित हये। इस बार इन्होंने उसका उद्देश्य ही समझ लिया।' फिर राजासे बड़े सुनियमसे कार्य चलाया था। कुछ मासों के मध्य राजनीतिपर कथनोपकथन होनेपर यह बोले-जिस हो क्या राजा, क्या प्रजा, क्या मइत् और क्या इतर- देशमें राजा राजाका, मन्त्री मन्त्रीका, पिता पिताका| सभीका आचार-व्यवहार एवं चरित्र इतना सुधरा, कि और सन्तान सन्तानका कर्तव्य देख कार्य कर सकता, राज्यमें नूतन चमत्कार तथा नूतन भाव देख पड़ा। उसो देशको सब कोई यथार्थ सुशासित कहता है। | फिर लु राज्यको कार्यप्रणालीसे लोग अत्यन्त सन्तुष्ट इस गजाने उत्तर दिया-'इस देशमें राजाका राजा, हुये थे। वह निज निज ग्रन्थ में कनफ चोका जयगान मन्त्रोका मन्त्रो पार सन्तानका सन्तान न होना | लिख हृदयको अपूर्व क्वतन्त्रताका परिचय सम्भव है। किन्तु प्रजासे प्राप्त करको हम उपभोग ____ लु राज्यको श्री और समृद्धि देख पाचवर्ती भूपाल क्यों न करेंगे! हिंसासे जल उठे। उन्होंने भी कनफचौके प्रवर्तित ___ इन्होंने देखा-सि राज्यमें रहना नहीं पच्छा। नियम पनायास चला स्व-स्व राज्यको यो बढाना उधर राजाने कनफुची को प्रथदानसे वशीभून कर चाही थी। किन्तु कार्यतः वैसा न हुवा। पाखंवों रखना चाहा था। किन्तु यह उस धातुके लोग न सि-राजने लु राज्यका सौभाग्य देख कहा था-'यदि रहे और किसी प्रकार कोई दान लेने को खोक्कत कुछ दिन कनफुची मन्वित्व करते जायेंगे, तो सामन्त न हुये। राजाने नाना उपायोंसे अर्थ वृत्ति और राज्यों के मध्य हम लु राज्यको सर्वप्रधान पायेंगे। भूमिवृत्ति देना चाही थी। किन्तु कनफचौने यही फिर सर्वाय पाच वर्तों हमारा राज्य हो । कथा कह प्रत्याख्यान किया-जबतक राजा हमारे पड़ेगा। इस समय लु-राजके राज्य छोड़ शान्ति उपदेशके अनुचार म चलेंगे, तब तक हम उनका अवलम्बन की चेष्टाम लगनेसे ही हमारा माल है।' दिया को ट्रय कैसे ग्रहण करेंगे। उस समय सिके सि-राजके मन्त्री की बुद्धि अति कुटिल रही। उन्होंने राजा और प्रजावर्ग अत्यन्त विलासोन्मत्त रहे। .. राजाको समझाया-किसो गतिमें ‘लुराजके साथ कनफुचोके उपदेशानुसार चलना उनके लिये असम्भव कनफुचीका विवाद लगा सकनसे आपको यह आशङ्का था। किसो प्रकार दोनों पोर मनोमिलन होते न मिट जायेगी। सि-के राजा इस पर सम्मान हुये थे। देख यह स्वदेश लौट पाये। लु राज्य उस समय भी फिर मन्त्रीने रूपखावण्यसम्पन्ना पूर्णयौवना चित्ता- अशान्तिपूर्ण रहा। शासन का भार राज्य के प्रधान कर्षिणी मनोहर-नृत्यगीतादि निपुणा, मधुरभाषिणी पुरुषांक हाथ पड़ा था। एवं कोकिलकण्ठो ८० कामिनी और प्रत्युत्कृष्ट १२० देग पाकर इन्होंने १५ वत्सरकाल कार्यके जगत्से अश्व संग्रहकर लुके राजाको उपढौकन पहुंचाया। अवसर लिया और केवल शास्त्रको चर्चा, देशके | पण्डितवर कनफुचोने इस उपढौकनका भावी परिणाम इतिहास-प्रणयन एवं सङ्गीत-पुस्तकको रचनामें | सोच राजासे प्रत्याख्यान करनेको उपदेश दिया था। कालयापन किया। किन्तु दुरदृष्टवशतः लुके राजाको मतिभ्रम पड़ गया। . फिर लु राज्यमें (१०से ५.५ वर्ष पूर्व ) शान्ति ! उन्होंने कनफुचीका परामर्श न मान युवतियोंको . स्थापित हुयो यो। राज्य के प्रधान प्रधान व्यक्तियोंने ' पन्तःपुरमें बैठाखा था। पन्तको वह युवतियोंके