पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७१२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कनफुची कनफुचोके जन्म लेने पर वृद्ध दम्पतीके प्रतिवेशी। रचित 'नीतिम' प्राचीन अन्य एवं शास्त्र-समूहमें आनन्दसे फल उठे। सम्यक् व्यत्पत्ति लाभ की। कनफचौके जन्मकाल-सम्बन्धीय अनेक गल्प सुन १८ वत्सरके वयसमें इन्होंने थानराज्यको किसी 'पड़ते हैं। चीन-ग्रन्थकारांने इस सम्बन्धपर अपने कुमारीसे विवाह किया था। किन्तु स्त्रोके साथ कन- अपने ग्रन्थीमें विस्तारित वर्णना लिखी है। अन्यान्य फुची अधिक दिन न रहे। एक पुत्र सन्तान होते 'प्रवादों के मध्य निम्नलिखित विषय सकल हो ग्रन्थकार ही इन्होंने स्त्रीसङ्ग छोड़ दिया। लिपिबद्ध कर गये हैं-कनफुचोके जन्म दिनसे पूर्व विवाहके पीछे इनका गुणराशि भचकने लगा। रात्रिको चिङ्गसाईने एक स्वप्न देखा था। इसी इसी समय चीनदेयमें साधारण के लिये अबका एक खपके उपदेशानुसार वह किसी पर्वतगुहामें जा भाण्डार रहा। सर्वापेक्षा न्यायपरायण व्यक्ति को ही उपनीत हुई। गुहामें उन्हें देवोंने घेर लिया। उक्त भाण्डारका भार मिलता था। कनफुची को वह था। उसी जगह देत्याने चिङ्गसाईसे उनके पुत्र को पद दिया गया। यह पिताके मरने पर अपनी वंश- महिमा, भविष्यत् कौति और सम्मान-कथा कही। मत कोलीन्य-मर्यादाको छोड़ दमरे किसी पैटक फिर अप्सराके हस्त महामा कनफचीने जन्मग्रहण धनके अधिकारी हा न सके। इसीसे अवको चेष्टामें किया। इन्हें उक्त पद स्वीकार करना पड़ा। दूसरे वत्सर ..इनको बाल्यजौवनोके सम्बन्ध में हम कुछ विशेष इनके पदको उति हुयो। कनफुची का साधारण समझ नहीं सकते। फिर भा बाल्यकालसे ही देशीय भूमि और क्षेत्र की अध्यक्षता मिजी यौ। इमो समय आचार-व्यवहार पर इन्हें आस्था रही। तीन वत्सर इनके पुत्रका जन्म हुवा। देबके मध्य कनफबोने वयःक्रम कालमें यह पिटहीन हुये। उस समय भो इतना सम्मान पाया, कि तयाकार प्रधान सामत्ताने इनके पितामह जोते थे। शेषको वयसके साथ साथ पुत्र हानेका समाचार सुनते ही एक पुकरिणी का इनमें इतिहासपाठका अनुराग भी बढ़ने लगा। मत्स्य उपहार पहुंचाया था। इसी वरनाके कारण ___ अल्प वयसको ही इनमें महात्माके सकल पूर्व लक्षण इन्होंने पुत्र का नाम 'लि' या 'पिया' (पुष्करे सो का . झलकते थे। बाल्यकालमें देशप्रचलित धर्मविश्वास मत्स्य ) रख दिया। और आचार-व्यवहारके प्रति इन्हें दृढ़ आस्था रही। उस समय चीनदेशको अवस्था अत्यन्त शोचनीय इनके निज प्राण में भक्तिका बड़ा प्राबल्य था। पूजा रही। न्यायपरता देशसे उठ गयी थी। अत्याचार चनापूर्वक इष्टदेवको निज आहार्य निवेदन किये और प्रविचार सर्वत्र फैल पड़ा। मन्त्री राजाको और विना यह सिको प्रकार खाते न रहे। पुत्र पिताको मार राज्य कौन लेता था। यह सकल कनफुचौके पितामहः अति धार्मिक एवं परम उपद्रव देख कनफुची कांपने लगे। अवशेषको इन्होंने 'पण्डित थे। बाल्यकालमें उन्होंके निकट इनको प्रतिज्ञा की-किसी न किसी प्रकार खजातिका शिक्षाका विधान हुवा। पितामहके प्रदत्त शिक्षा चरित्र सुधारेंगे। बलसे कनफुची विविध शास्त्र पढ़ सदाशयताका अनु अपनी प्रतिन्ना सफल करने को यह उपाय ढंढ़ने करण करनेको विशेष यत्न लगाते थे। पितामहके लगे, किन्तु स्त्रीको एक विषम अन्तराय सके। उन 'मरनेपर यह तत्कालीन चीन-पण्डिताग्रगण्य 'चेङ्गमों' समय स्त्री-पुत्र को मायासे संसारमें फंस जाने पर नामक पण्डितके शिष्य बने। स्वीय अपरिमेय बुद्धि इन्होंने कोई कार्य बनते न देखा। इसीसे कनफ चो एवं मेधाबलसे. १५. वत्सर वयःक्रमकालको हो कन स्त्रीपुत्र एवं राजकार्य छोड़ साधारणको शिक्षा देने के 'फुचौ असाधारण विद्वान हो गये। फिर इसी वयसमें लिये प्रस्तुत हुये थे। उस समय अपनी माताके जीवित लिख-पढ़ इन्होंने इयानो और सोन नामक सम्राट्य-' रहनेसे यह कहों जान सके, घरमें हो छात्रमण्डलीको