कनकाली-कवीश्वर कनकखस्ती (सं. स्त्री०) वर्णभूमि, सोनेको कान।। घोड़ा। यह पाकारमें गर्दभसे पधिक बड़ा नहीं कनकाङ्गद (सं० लो०) कनकमयं अङ्गदम्, मध्य होता। कनकानी खु ब कदम चलता और हवाकी पदलो। १ वर्णनिर्मित केयूर। (पु.) २ कृत तरइ उड़ता है। राष्ट्र के एक पुत्र । कनकान्तक, कमकारक देखो। कनकाङ्गदी (सं० पु०) कनकाङ्गदमस्वास्ति, कमकाद कनकायु (स'• पु.) धृतराष्ट्र के एक पुत्र । इनि। विष्णु। कमकारक (सं.पु.) कनकमिव सर्वतो ऋच्छति .. "महावराहो गोविन्दः सुवेयः बनवादो।" (विसहस०) व्याप्रोति दीप्येति शेषः, कनक-ऋ-प्रय स्वार्थ कन्। कनकाचल (सं. पु.) कनकमयो पचलः, मध्य- कोविदारवृच, सुनहले कचनारका पेड़। पदला.। १ सुमेरु पर्वत। २ धान्यादि दश दानों में वाचनार और कोविदार देखो। एक दान। इसका प्रमाण तीन प्रकार है। सहस्र कनकालुका (सं० बी०) कनकनिर्मित पात्रः पल स्वर्णदानको उत्तम कनकाचल कहते हैं। इसी सलिलाबाधारपावविशेषः, कनकालु संत्रायां कन्- प्रकार पांच सौ पलमें मध्यम और ढाई सौ पलमें टाप। सुवर्षभृङ्गार, सानेको सुराहो। अधम कनकाचल दान होता है। ऋत्विकोंको ऐसे कनकासव (सं• पु.) हिलावासका पासव, हिचकी ही कनकाचल दान देनेसे सब पाप मिटता और और दमेको बोमागेका एक अर्क। फल, मूल, पत्र ब्रह्मलोक मिलता है। (अति ) एवं शाखा सहित धुस्तुर ४ पस, वासकके मूलको कनकालि (स'• स्त्री०) कनकपूर्ण प्रश्नतिः, छाल ४ पल, पिप्पलो, यष्टिमधु, कण्टकारी, नागकेशर, मध्यपदलो। एक माङ्गलिक दान। शुण्ठी, भार्गी तथा तालोशपत्रका चुणे २२२ पख, कनकावली (स. स्त्री०) कनकाचलि-डीए। एक द्राक्षा २० पल, जल १२८ शरावक, शर्कग साढ़े मानसिक दान। किसी देवाचनाके पीछे प्रतिमा १२ शरावक और मधु सवा सेर एकत्र घड़े में १ मास विसर्जनकाल सधवा गृहकों स्वयं वेशभूषा बना | भरकर रखनेसे यह प्रासद प्रस्तुत होता है। कनकासव अन्यान्य सधवा स्त्रियोंके साथ प्रतिमा वरणपूर्वक छानकर पीनेसे हिक्का और खासरोग छट जाता है। अपना पच्चन फैला देती हैं। उसी समय एहस्वामी (मेषज्वरबावची) प्रतिमाके पश्चात्से उक्त अञ्चल पर मुद्रायुक्त तण्डलपात्र कनकाह (सं० लो०) कनकस्य पाहा नाम यस्ख, निक्षेप करता है। कर्वी पच्चल उठा और मस्तकपर बहुव्री०। १ खेत धुस्तूर, सफेद धता । २ तण्डलीय लगा गृहको चली जाती हैं। उस समय उन्हें जलको शाक, चौराई। ३ जयपालच, जमालगोटेका पेड़। धारासे ले जाना पड़ता है। इसोका नाम कनकाचली ४ धुस्तरवृक्ष, धतूरे का पेड़। ५ नागकेशरवृक्ष। है। विवाहको यात्राके समय भी इसीप्रकार कनका. | कनकाय (सं० पु.) कनकं पायो यस्य, बहुव्री। जली दान करनेकी प्रथा है। बुदवका एक नाम। पन्चान्य पथके लिये कनकार देखो। कनकाद्रि (सं• पु.) कनकमयो ऽद्रिः, मध्यपदलो। कनको (हिं. स्त्रो०) १ क्षुद्र कण, छोटा टुकड़ा। सुमेरु पर्वत। प्रधानतः तरुलके क्षुद्र कोंको 'कनको कहते हैं। कनकाद्रिखण्ड (सं• क्लो.) स्कन्दपुराणका एक कनकूत (हिं. पु.) कणों का अनुमान, दानेको अंश। पान्दाज । वमें पके पत्र के अनुमान करने का नाम कनकाध्यक्ष (स.पु.) कनकस्व रक्षणे अध्यचः, कनकूत है। जमीन्दार खयं वा किसी दूसरेसे वडो मध्यपदलो । स्वणरक्षक, सोनेका मुहाफिज़ । इसका सन्नमें होनेवाले अनाजको चन्दाज बमा छषकको संस्कृत पर्याय भारिक है। मूल्य दे देता और अनाज से खेता है। .कमकानी (हि. पु.) पवभेद, किसी किस्मका | कनकेश्वर (सलो .) सौ विशेष । Vol. IIL 177
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/७०६
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