६६४ कदलो इसका चण बनता है। फिर दक्षिण-अमेरिकामें उक्त | सकते हैं। पाश्चात्य लोग अपने अध्यवसायसे यह तथ्य चूर्णसे बिस्कुट तैयार होता है। वृटिश गोनियामें पाविष्कृत होनेपर बड़ी वीरता देखाते और कितने कच्चा केला प्रधान खाद्य गिना जाता है। इक्षुके ही उन्हें इसके लिये वोर भी बताते हैं। किन्तु प्राचीन बाद इसोको अधिक लगाते हैं। वृक्षके रससे क्षार भारतवासी निश्चय यह विषय समझते और किसी- वा लवणवत् ट्रव्य प्रस्तुत होता है। दक्षिण-प्रम किसी कर्ममें इसे व्यवहार करते थे। संस्कृत नाम रिकामें पक्के केलेसे ताडौकी तरह एकप्रकार मद्य अंशुमत्फला और मालाकरों का व्यवहार देखने से इस बनता, जो तीव्र नहीं पड़ता। फिर पक्के फलका एकमात्र कथाका प्रमाण मिलता है। माली पाज भी शस्य पत्ते में लगा सुखाते और छोटे-छोटे टुकड़े केलेके सूतसे माला पिरोते, फलोंके पत्ते लपेटते, स्वता- काटकर बनाते हैं। प्रयोजनके अनुसार एक टकड़ा वृक्षोंके मच्च बांधते और पावश्यकतानुसार दो-तीन तोड़ पानोमें घुलानेसे शर्बत तैयार हो जाता है। धागे एकमें लगा रस्सी बट डालते हैं। यह शबंत खब शीतल और श्रमापहारक रहता कदलीवपके सूत्रसे कागज, रस्मो, प्रभृति प्रस्तुत है। भारतवर्षमें इसके छिलकेसे चमड़ेका काला रङ्ग होता है। विदेशीय वणिकों हारा यह निम्नलिखित बनता है। उपायसे बनता है। कैलेका सूत तैयार करनेको दो कैलेका गुण-पक्के केलेमें अनेक गुण हैं। यह बल उपाय -(१) वृचको जलमें सड़ा और (२) कलमै कारक, शीतल, पित्तासनाशक, गुरुपाक, पजीणं- पिसाकर। प्रथम उपायसे सूत निकालनेको वृक्ष काट रोगमें अपथ्य, सद्य शुक्रादिवर्धक, तृष्णा एवं श्रम- क्षेत्रमें डाल देते और कुछ दिन सुखा लेते हैं। फिर हारक, लावण्यवर्धक, कफकर, प्रामकर, दुर्जय, | शेषोक्त उपायसे वृक्षको काट कलमें गैसना पड़ता खानेमें ईषत् कषायसंयुक्त और मधुररसविशिष्ट होता है। पिसाई और सड़ाई हो जानेसे वृक्षको सोडा है। दधि, दुग्ध और घोलके साथ कदली खानेसे | तथा चनैको कलईके जलमें पका सूत कड़ा करते हैं। अतिशय दुष्पच्च निकलती है। चम्पक वातपित्तको पकाते समय सूतसे अन्यान्य अंश छूट जाता है। ६५ मिटाता और.अति शीतलता लाता है। मनके एक बैलरसे एक ही दिनमें २१ मन सूत बन _ मोचा-कफ, कमि, कुष्ठ, लोहा, वातपित्त, एवं.] सकता है। सूत्र परिष्कार करने को पांच बार कदती ज्वरनाशक, अग्निद्धिकर और उदरदोषनिवारक है। पकाना पड़ती है। २१ मन सूत तैयार करने में काण्ड बलको बढ़ाता और वातपित्तको दबाता है। १मन सोडा और १म नेको कलई डालते हैं। चम्पक बहुमूत्ररोगमें उपकारप्रद है। मुसलमान् | पकानेमें तरह तरह का सूत छांटकर निकालना हकोम भी केलेको पित्त, वायु, रत और हृद्रोगनाशक पड़ता है। फोकै रङ्गका सूत ६ घण्टे धोनेसे परिष्कार मानते हैं। डाकर प्ले-फेयरके कथनानुसार यह शुक्र होता है। किन्तु गहरा रंग रहते १८ घण्टे से कम वृद्धिकर और मस्तिष्कदोषनाशक है। किन्तु मोचा समय नहीं लगता। बेलरका सिद्ध सूवयन्त्रके सहारे टुष्यच्य होती है। हकीम कदली-भोजन-जनित | जलके हौज़में धोया जाता है। फिर सूत्रको छायामें दोषके लिये मधु, पाट्रॅक और निर्यास खानको| सुखाते हैं। " बताते हैं। इसके कच्चे पत्तेको पावरणी चक्षुरोगमें ___ कदलीके काण्ड, विटप, पत्र और सकल ही उपकार करती है। डालके यससे बहुमूत्र रोगका अंशसे सूत्र निकलता है। काण्डको अपेक्षा शाखाका कदल्यायघृत बनता है। सूत्र परिमाणमें अधिक पड़ता और अधिक मूल्यवान् कैलेका स्त-कदलीसे फल, काण्ड, मोचा और पत्र भी ठहरता है। पत्रका सूत्र अति सूक्ष्म रहता और मोचाको छोड़ दूसरा भी एक सुन्दर प्रयोजनीय वस्तु | क्षुद्र होनेसे सिवा कागज बनानेके दूसरे काममें नहीं उत्पन्न होता है। इसको केलेके पेड़का सूत कह | लगता। १८६४ ई०को डाकर लेने इससे एकप्रकार .
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६९५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।