__कदलौ होनेपर पत्तेके मोचेका तस्ल फटता और मोचा। रहता है। फिर वीज भी इतना पाता, कि कालपर नीचेकी ओर लटकने लगता है। नारिकेल, ताल, बिलकुन्त शस्य नहीं देखाता। बीजोपर पतली मलाई- सुपारी, खजुर प्रभृति वृक्षों में भी पत्तेका मोचा रहता को भांति कुछ कोमल चिपचिपा शस्य रहता है। है। मोचा कदली वृक्षके स्कन्धसे अवमुख निकल परमेश्वरको पाश्चर्य महिमा है! पक्षी उक्त शस्य शेषको कुछ बढ़नेपर निम्नमुख भुक पड़ता है। खानेके लिये बड़ी दरसे श्रा यवफल ले जाते हैं। यह देखने में कोणाकार होता है। लम्बाई प्रायः फिर सकल स्थानोंसे इसी उपाय हाग वौज लाये १ फुट और मध्यस्थलको चौड़ाई कोई ६ इञ्च रहती लानेपर कदलीका वृक्ष उत्पन्न होता है। है। एक मोचेमें अनेक विभाग होते हैं। प्रति अन्यान्य स्थलों में कदलो लगायी जाती है। लगी विभागमें दो सार मुकुलपुष्य चर्मवत् पौष्यिक पत्रावतसे हुई कदलौके फल में वीज पड़ने नहीं पाता। फलको श्रावत रहते हैं। प्रत्येक सारमेंट या १० पुष्प पाते उत्तरोत्तर उन्नति होते रहती है। वृक्षमें किल्ला हैं। प्रत्येक पुष्य में फल लगता है। पुष्योंके मध्य फटने लगता. और उसका उत्पादक बल बढ़ता है। पुपुष्य (Male flowers) निम्न श्रेणी और स्त्रीपुष्य यत्नपूर्वक लगाये जानेसे कदलीके अच्छे अच्छे फलोंमें . दा लिङ्ग पुष्य ( Female-flowers or Herma आजकल बिलकुल वीज नहीं आता। इनको phrodite flowers ) ऊध्र्व श्रेणी में रहते हैं। प्रत्येक वीजोत्पादिनी शक्ति सम्पूर्ण रूपसे बिगड़ गया है। भागके पुष्य ज्यों-ज्यों बढ़ते, त्यो त्यों उनके आवरकके किन्तु किसी किसी स्थानमें जलवायुके प्रभावसे लगाये पौष्यिक पत्रावत खसक पड़ते हैं। जड़की ओर से जाते भी सहज यह शक्तिरहित नहीं होती।. . पुष्य फल में परिणत होते हैं। प्रत्येक पौष्यिक दो-एक वार लगाये जानेपर फलमें वोज नहीं आ पत्रावर्त में से १० तक फल लगते हैं। एक एक सकता, किन्तु तीसरी वार निकल पड़ता है। फलसमृहको हिन्दीमें 'गहर' कहते हैं। पौष्णिक यवद्दोपका जलवायु ऐसा ही है। बङ्गालमें कांटालों पत्रावर्तमें जिसने पुष्प लगते, उतने फल हो नहीं केला बहुत दिनसे होता है। किन्तु आज भी उसको सकते। एक वृक्ष में एक ही समय एकसे अधिक गहर वीजोत्पादिनी शक्ति बिलकुल नहीं बिगड़ी। अति पाती। गहर काट लेनेसे कुछ दिन पौ. अल्प दिनको हो उसमें वीज पड जाता है।। कदली वृक्ष मुख जाता है। अत्यन्त पुरातन पड़ने बङ्गालमें कांठाली केलेका भाड़ अधिक पुरातन होने या गहर छोड़ मर मिटनेपर वृक्षके पिण्डमूलमें न देना चाहिये। किल्ले निकाल अन्य स्थानमें. से ८ तक किल्ले फटते हैं। लगाना और कैलेको उन्नति पर लाना लोगोंका कदली अनेक प्रकारको होती है। सबमें वीज कर्तव्य है। लगाये जाने और अच्छी भूमि पानसे नहीं रहता। जङ्गली और चट्टग्राम प्रदेशको एक कांठालो केलेको उन्नति मात्र होती है। किन्तु उसको जातीय कदलीय वौज होता है। इसी वौजसे वृक्ष कुछ भी शक्ति नहों बिगड़ती। चीन देशमें एक उपजता है। किसी किसी अन्य जातीय कदलोमें प्रकारको कदली है। वह अति क्षुद्राकार और फल- रहते भी बीजसे कोपल नहीं फूटती। पार्वत्य | विहीन रहती है। प्रदेश में कदली वृक्ष अतिअल्प होता है। वहां कदली अति शीघ्र शोघ्र बढ़ती है। अच्छी यह बढ़ नहीं सकती। क्योंकि अन्यान्य वृक्षोंकी भूमिमें इसे लगाने पर यह वृद्धि सहज हो देख प्रतियोगितामें कदली वृक्षको पावत्यप्रदेशको कठिन | पड़ती है। कदलोके कच्चे पत्र को मध्यपत्र कहते हैं। मृत्तिकासे रस खींच अपनी पुष्टिका साधन करना | जब वह पककर बढ़ता, तब उन्तसे पत्राग्र पर्यन्त असम्भव देख पड़ता है। इसीसे इसमें किल्ले नहीं | एक धामा लगा कोई एक घण्टे अपेक्षा करने पर फटते। कि न फटनेसे ही पार्वत्य कदलीमें वीज | देख पड़ता नापके धागेसे वह प्रायः १ इन दोघे है। ,
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