कदम्ब-कदम्बगोलकन्याय जयवर्मा (श्य) वा जयसिंह फिर चालुक्य प्रवल हुये। कदम्बवंश नीचे गिर गया था। चालुक्यराज कीर्तिवर्माको शिलाजिपिमें माबुली तैल (१म) शान्तिवमा(श्य) चोकि इसका कितना हो परिचय पाते हैं। I.. (शक १०१०) कीर्तिवर्मा (श्य) । विक्रम (विक्रमाइ) वनवासी वा जयन्तीपुरके कदम्बराजवंगका अध:- व वा कीर्तिदेव (श्म) तैलप (श्य) (शक १०२१ पतन होत हो गोपकपुर (गोवा)में दपर किसी उपनाम तैलनसिंह वंशन अनेक दिनों राज्य किया था। यहांके कदम्ब (शक 228) और १०७२) तैलम् राजा षष्ठदेवकै ४६४८ कल्यब्दको एक शिलालिपि कोतिदेव (२य) निकली है। इनका अपर नाम शिवचित्त था। इनके कामदेव वा तैलमन अङ्ककार (शक ११०३ एवं १११८) समय गोपकपुरमें गोपेश्वरका मन्दिर रहा। (Fiees's इसके सिवा शिलालेखमें दूसरे भी कई कदम्ब Dynas-ties of the Kanarese Districts p. 89) राजावों का नाम मिला है- प्राचीन कदम्ब राजावोंसे भारतके अपरापर कुण्डमरस वा सत्याश्रय (शक 2४१),-श्य मटर.. नरेशोंका सम्बन्ध था। जयकेशी नामक एक कदम्ब बर्मा (शक ८५६ और ९६६),-चामुण्डराय (शक २६७ राजकुमार रहे। उन्होंने विक्रमादित्य चारवमलको और 2७०), हरिकेशरी (शक ८७७),-३य मटर- कन्याम विवाह किया। पाहवमलके माथ उनकी वर्मा (शक १०५३)। विशेष बन्धुता भो थो। जयकेशीको कन्या मैनल- शिलालेख कतिपय दूसरे महामण्डलेश्वर कदम्ब देवोके साथ अनहिलवाड़के राजा कर्ण का विवाह राजावों के उल्लेखसे खाली नहीं। महामण्डलेवरों को हुआ। उन्होंके गर्भसे विख्यात जयसिंह सिद्धराजने क्षमता राजावोंसे होन रही। वह भारतवर्ष के वर्तमान जन्म लिया था। (कुमारपालचरित १९६८). प्रधान प्रधान सरदारों की भांति क्षमताशाली थे। उनके ! कदम्बक (सं० क्लो०) कदम्ब संन्चायां कन् । १समूह, सम्मानार्थ पेमैट्टि नामक वाद्ययन्त्र बजता और हनमान- जखीग, मुण्ड। “कदम्बकं वातमजं मृगाणाम्।" (भडि) चिह्नित ध्वज उड़ता था। वह सिंह-चिहित वर्णमटा (पु०) २ देवताड़ वृक्ष। ३ हरिद्रा, हलदीका पेड। (अशरफो या मोहर) अपने व्यवहार में लाते रहे। ४. सषेप वृक्ष, सरसोंका पेड़! ५ दारुहन्ट्रिा , दारु- वर्तमान बैलगांव नामक जिले में पहले कई कदम्ब हलदी। अखके पादका एक गेग, घोड़े के प्रेरको राज्य करते थे। उनको राजधानी पलाशिका (वर्त- बीमारी। अखके खुरतलमें कदम्बके फल जैमा उठने- मान हालसो) रही। यहांके कदम्ब राजावा में वाला मांसाकर कदम्बक कहाता है। यह श्लेष्मा और काकुस्थवर्मा और मृगेशबर्मा ही प्रधान थे। वह शोणितसे निकलता है। (अवदत्त) 'पारिस-गोत्रीय रहे। काकुस्ख सम्भवतः ३६० शकमें कदम्बका (सं. स्त्रो०) कलसी, राजहंमिनी। विद्यमान थे। शिलालेखमें काकुस्थवमाके कुछ वंश- कदम्बकोरकन्याय (सं० पु.) कदम्बके केशरसमूहका न्याय, कदम्बके रेशको चाल। कदम्ब पुष्पको चारो धरों का नाम मिलता है- ओर जैसे केशर एक साथ उठता, वैसे ही केवल एक काकुस्थ वर्मा शब्दसे एककाल बहुतसे शब्द निकलने पर कदम्ब- शान्तिवर्मा कोरवन्याय लगता है। मृगशवर्मा कदम्बगोलकन्याय (सं० पु.) कदम्बके गोसकका न्याय, कदमके गोले को चाल। कदम्ब गोलाकार रविवर्मा भानुवर्मा शिवरथ होता है। उसके मात्रको चारो ओर केशरसमूह भी इरिवर्मा समभावसे बढ़ा करता है। इसलिये क्षुद्र और वह Vol. III. 172
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