दिय। ..कदपा. ६८१ गुरुम-कुण्ड के किसी नवाबने कदपा अधिकार किया। ई०को निजामने यह स्थान उहार करनेको सविशेष यह नवाब पत्यन्त पराक्रान्त हो गये थे। अन्तको चेष्टा लगायी थी। इन्होंने अपने नामसे मुद्रादि भी चखा दिये। १७८२ ई०के सन्धिपत्रानुसार टीपू सुलतानने चिरदिन कोई विषय समान नहीं रहता। यहांके। समस्त कदपा जिला निजामको सौंप दिया। फिर मुसलमानोको क्षमता क्रमशः घटने लगी। १६४२ निजामने रेमण्ड साइबको जागिरि प्रदान किया। ई०को महाराष्ट्र-वीरोंने यह स्थान जीत लिया था। उसके बाद कई वर्ष तक पलिगागने कदपा दुर्ग महावीर शिवजीने ब्राह्मणोंको यहांके दुर्गको अधिकार करने का अनक चेष्टा लगायी थी। १७ रक्षाका भार सौंपा। कुछ दिन बाद मुसलमानोंने ई० में निजामने अपना देय धन परिशा के लिये इसे फिर जीता था। नबी खान् नामक एक पठान! अमरेजोंको कदपा दे डाला। १८०० ईसे यह कदपाके स्वाधीन नवाब बने। इसके पीछे क्रमान्वयम | जिला अंगरेजोंक हाथ आया। इसी समय कदपाका तीन नवाबोंने प्रबल प्रतापसे राज्य शासन किया था। पार्वतीय स्थान पलिगारकि अधिकारमें रहा। वह १७३२ ई० को अन्तिम नवाबसे महाराष्ट्रोंका विवाद मध्य मध्य बड़ा उत्पात उठाते थे। दस्यत्ति हारा बढ़ा। उसी समयसे यहांके नवाबोंकी क्षमता घट उनको एक प्रकार जीविका चलते रहो। प्रथम चली। १७५० ई०को कदपाके नवाब कर्णाटिकके अंगरेज़ उन्ह दबा न सके थे। किन्तु क्रमशः नाना युद्धकाण्ड में लिप्त थे। दूसरे वर्ष उन्होंने निज़ाम प्रकार उपाय अवलम्बन करने पर पलिगारोने वश्यता मुजफफर जङ्गके विरुद्ध षड़यन्त्र किया। उसौसे मानी। उनके वंशधर पाण भी कदपाके नाना लुकरद्दीपल्ली नामक गिरिपथ पर निज़ाम मारे गये। स्थानों में मौरूसो जमीन पाये हैं। १८३२ ई०को १७५७ ई०को महाराष्ट्रोंने कदपा नगर जोत किसी मसजिदपर यहांके पठानों और अगरेजोसे लिया था। किन्तु उसी समय निजामको फौज | झगड़ा लग गया था। उससे यहांके समस्त मुसख- कदपाभिमुख अग्रसर होनेसे महाराष्ट्र कुछ कर |मानोंने विद्रोही हो सब-कलकर मैकडोनल्डको मार न सके। डाला। इस घटनाके चार वर्ष पोछे यहांके किसी महिसुरमें हैदर अली प्रबल पड़ गये थे। १७६० पलिगारने गवरनमेण्टसे मनोमन वृत्ति न पाने पर ई०को उन्होंने अंगरेजोंके साथ युद्ध रोक कदपा कोई दो हजार लोग संग्रह कर अंगरेजोंके साथ युद्ध जीतनका प्रबन्ध बांधा। किन्तु हैदर अलीने समझा, छेड़ा था। कईवार युद्ध होनेपर विद्रोहियोंमें कोई कि कदपा जीतना बहुत सहज न था। इससे हत तथा कोई आहत हुवा और कोई भाग गया। उन्होंने गुप्त भावमें निजामके साथ सन्धि को। उक्त उस समयसे कदपा शान्ति स्थापित हुई। के अनसार ठहर गया-दोनों मिलकर कर , यहां हिन्दू और मुसलमान रहते हैं। हिन्दवों में मण्डल उपकूल जीतें और जयलब्ध जनपदादिक ब्राह्मणों की संख्या अधिक है। प्रायः सकल ब्राह्मण मध्य हैदर अली कदपा ले लें। अनेकवार युद्ध हुशा शैव पौर क्षत्रिय वैष्णव हैं। सिवा इसके चनदी, था। १७८२ ई०को हैदर अली मर गये। कदपा येरुकल, चेञ्च बर और सुगला प्रभृति कई प्रकारको वाले अन्तिम नवाबके किसी वंशधरने सिंहासन दूसरी जातियां भी बसती हैं। पानेका दावा किया था। कितनी ही अंगरेजी फौज | . कदपा जिले के प्रधान नगर यह हैं-कदपा, उनको साहाय्य देने पर राजी हुई। किन्तु उभय | बदतोल, प्रोहतुर, जन्म लमदगु, कदिरो, दमनपल्ली, दसके सामने आते ही मुसलमानोंने अंगरेजी | पुलिबन्दल, रायचोट, बेम्पली. और बयलपद। .... सिपाहियों को अन्यायरूपसे मार डाला। इसके बाद । २ कदपा नगर। यह नगर पक्षा. १४.२%80" कदपामें कुछ दिन तक कोई झगड़ा न उठा। १७४. .उ० और देशा. ७८१४७“पू०पर अवस्थित है। • VoL III. 171
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