कथकथा-कथलथिकता इसका संस्कृत पर्याय एकनट और कथाप्राण है। इस नगरके निकटवर्ती लोग रामधनको चर्णिको ३ वता, बयान करनेवाला। ४ एक नैयायिक | पकड़ कथकता किया करते हैं। ग्रन्थकर्ता। ___कथकताको चूर्णि को 'साट' कहते हैं। चर्णिमें कथकता (स. स्त्री.) कथक-तल-टाए। १ वाक्या- मध्य मध्य कथकके कुछ आवश्यकीय सत रहते, लाप, बातचीत। २ धर्मविषयक अालोचना, मज जैसे-भो० उ० अर्थात् भीष्म उवाच या भीष्म कहते हैं। हबी बयान्। चर्णि के अतिरिक्त कथकको रात्रिवर्णना, मध्याह्नवर्णना, कथकता पाठ ( पारायण ) से विभिन्न होती है। ग्रीष्मवर्णना, वसन्तवर्णना, देशवर्णना, वेश्यावर्णना पाठ और पारायण देखो। पाठकार्य प्रात:काल-कर्तव्य है। प्रभृति मुखस्थ रखना पड़ता है। वर्णनाका स्वतन्त्र किन्तु कथकता वैकालको हुआ करती है। कथकता पुस्तक भी रहता है। इस वर्णनामें अनुप्रासका शब्दसे भारतमें कथक-कट क पुराणादि धर्मशास्त्रोक्त आडम्बर अधिक होता है। कथकताके समय आवश्यक उपाख्यानोंकी वर्णनाका बोध होता है। वर्णना प्रयोग की जाती है। कथकताको सृष्टि चलनेका कारण क्या है? इस ___ कथकता प्रारम्भ करते वेदीमें शालग्रामशिलाको देशके लोग प्रायः सवेरे नाना कार्यों में व्यस्त रहते रख कथक बैठते हैं। पहले मङ्गलाचरणपूर्वक हैं। विशेषतः संस्कृतभाषामें होनेवाला पाठ साधारण कथाको सूचना होती है। फिर कथक कथकताका व्यक्ति समझ नहीं सकते। किन्तु कथकता उससे विषय बताते हैं। कथकका एकान्त कर्तव्य लोगोंके अलग है। इसमें आडम्बर, विलक्षण सङ्गीतविद्या मनको मिलाने पर विशेष लक्ष्य रखना है। इस देशमें और सहज ही लोगोंके मन रिझानको क्षमताका महाभारत, रामायण और भागवतकी कथकता होना प्रावश्यक है। कथकता देशको सरल भाषामें होती है। जिस ग्रन्थको वर्णना चलती. प्रति दिन होमेसे सबको अच्छी लगती है। मीठी बातोंमें उससे एक-एक विषयको कथकता निकलती है। इसी लोगोंको धर्मापदेश देने के लिये यह एक सहज उपाय कथनीय विषयको कोई कोई 'पाला' भी कहता है, है। किसी श्रेणीके व्यक्ति क्यों न रहे, कथकता जैसे-वामन भिक्षा, ध्र पचरित्र, प्रसादचरित्र इत्यादि। सभीको प्रिय है। कथक गुणवान होनेसे लोग सहजमें 1. ७८० वर्ष पहले बङ्गालमें कथकताका बड़ा ही खिंच जाते हैं। बङ्गालमें प्रायः सौ वर्षसे कथ- आदर रहा। उस समय अनेक अच्छे अच्छे कथक कताका प्रभाव बढ़ गया है। विद्यमान थे। प्रवीण लोग कथकताके पक्षमें रहे। बङ्गालमें गदाधर और रामधन शिरोमणिने नये क्या राजा, क्या मध्यवित्त और क्या दरिद्र-सभीको ढङ्गमें कथकताको प्रचार किया था। गदाधर शिरोमणि कथकता सुनना अच्छा लगता था। आजकल कथ- वधमान जिलेके सोनामुखी ग्राममें रहते थे। राढ़ कताका वैसा समादर देख नहीं पड़ता। दो-एकके पच्चलके प्राय सब कथक उनके शिष्य वा प्रशिष्य | अतिरिक्त अच्छे कथक भी अब दुर्लभ हैं। थे। उनमें प्रायः सभी सक्त शिरोमणिको बनायो। कथक्कड़ (f'. पु.) विज्ञ कथक, खुब किस्म चर्णिके अनुसार कथकता करते थे। कहनेवाला। रामधन गोबरडांगके निवासी रहे। उनके अनेक कथऋथिक (सं० त्रि.) कथं कथमिति पृष्टत्वेनास्त्यस्य, ख्यातनामा शिष्य थे। उनके मध्य रामधनके ही कथम्-कथम् बाहुलकात् ठन्। प्रष्टा, पूछनेवाला, जो भ्रातुष्पुत्र धरणि वङ्गदेशमें प्रसिद्ध हैं। धरणिका कण्ठ | हमेशा सवाल किया करता हो। जैसा मधुर वैसा ही सङ्गीतविद्यामें ज्ञान भी प्रखर कथाथिकता (सं० स्त्री०) कथाथिकस्य भावः था। इससे जिसने एकबार उनकी कथाको सना, कथाथिक-सल-टाप। प्रन, जिज्ञासा, पूछताछ, सवाल. वह उन्हें पहनामें फिर भूल न सका। कलकत्ते और करते रहनेको हालत।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६७७
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