, कवादि-कथक ६०५ पदार्थ, तोन खराब चोजे। यह शब्द नित्य ही बहु-। धावा मारा! क्रमशः इनके तत्त्वावधानमें चारो ओरसे वचनान्त है। पठान सिपाहो पा पाकर जमा हुये। कत्लखान्ने कत्रादि (सं० पु०) पाणिनि उक्त जातादि पर्थ में | उनके साहाय्य से सलीमाबादमें सातगांवोके शासन- ढकञ् प्रत्ययसे बना हुआ शब्दसमूह। कच्चयादिगणके कर्ता मिर्जा नजातको हराया और मेदनीपुर,वसन्तपुर अन्तभूत कचि, उम्भि, पुष्कल, मोदव, कुम्भी. कुण्डिन, एवं दामोदर नदोके दक्षिण तीरका अधिकार पाया। 'नगरी, माहिमती, वमती, जरव्या और ग्राम शब्द है। उसी समय सम्राट अकबरने मिर्जा पजीजको बङ्गाल, कस्य (हिं. पु०) लोहेको स्याही, एक रंग। किसी विहार और उड़ोमेका शासनकर्ना नियुक्त कर भेजा घटमें १५ सेर जल और आध सेर गुड या चीनी मिला था। किन्तु वह भी इनसे हार गये। १५८३१ को थोडासा लोहचुन डालते हैं। फिर यह घट पातपमें मुगलमारोके निकट दामोदर नदी किनारे मुगलों और रखा जाता है। कुछ दिन बाद घड़े का पानी उठता पठानों में युद्ध हुआ था। उसमें सादिक खान और और मुखपर गाज आ जमता है। जल का रूप काला शाहकुलो महरमने इन्हें परास्त किया। फिर भूरा होनेपर कत्थ पक्का पड़ता और रंगाईमें लगता है। प्रकवरके कर्मचारी और कवनखानके बोच सन्धि कत्थई (हिं. पु.) १ किसी किस्मका रंग। लाल दुई। उसके अनुसार उडीसा इन्होंके अधिकारमें काले रंगको कत्थई कहते हैं। इसके बनाने में हर्रा, रहा। किन्तु मम्राट अकबरने उस सन्धिको माना कसोस, गेरू, कत्था और चूना पड़ता है। कत्थई न था। कत्लखान् का शास्ति देने मानसिंह बङ्गाल रंगमें खटाई या फिटकरीका बोर नहीं लगाते। | और विहारके शासनकर्ता बनकर पाये। धरपुरके (वि.) २ खरा, खेरका रंग रखनेवाला। निकट युद्ध चला था। इन्होंने सम्राट के सिपाहि- कत्थक (हिं. पु.) जातिविशेष, एक कौम । कत्थक | योको हरा विष्णुपुर अधिकार किया और मानसिंहके नाचते और गाते-बाजते हैं। भारतवर्ष में जयपुरके | पुत्र जगसिंहको बांध लिया। कुछ दिन पीछे ही कत्थक प्रसिद्ध हैं। कथकता देखो। कुत्लखान् मर गये। इनके प्रधान वज़ोर ईसा- कत्थन (सं० ली.) १ अहङ्कारोक्ति, लन्तरानी, डोंग। खान्ने मानसिंहसे सन्धि कर जगतसिंहको छोड (त्रि.) २ आत्मश्लाघापर, डौंगिया। ३ शूरमन्य, दिया। शेखोखोर, लबाड़िया। कन्सवर (सं० लो०) कस-व-अप। स्कन्ध, कन्धा । कथा (हि.पु.) १ खैर, खेरको लकड़ियों को डबाल कथं (सं.अव्य) केन प्रकारण, किम् थम्। किमय। कर निकाला हुआ सत। इसे इकट्ठा कर चौकोर पा ५॥३५॥ १किस विधानसे, लौन तरीके पर। टकड़े या छोटे छोटे गोले बना लेते हैं। कथा ३ कुतः, कस्मात्, क्यों, कहांसे । पानमें खाया, और अख मोंपर लगाया जाता है। कथं मृताः प्रभवति वेदशास्त्रविदां प्रभो।" (मनु शर) कत्था और चूना बराबर पड़ने में ही पामका मजा है। कथंरूप (सं० वि०) किस प्रकारका, कौनसी खदिर और खैर शब्द देखो। सूरत-शक्ल रखनेवाला । कत्यय (संलो०) कत् सुखकरं पयोऽस्य, बहुव्री। कथंवीय ( स० वि०) किस शक्तिका, कौनसी ताकत १ मुखकर जलाशय, फरहतबखूश तालाब। २ सुख- रखनेवाला। कर जल, पाराम देनेवाला पानी। (वि.)३ तर- जित, उमड़ा हुआ, जो चढ़ रहा हो। कथ, कत्या देखो। कत्लखान्-एक लोहाना अफगान। इन्होंके समय कथक (सं० पु०) कथयतोति, कथ कर्तरि खलन बङ्गालमें विद्रोह उठा था। उसी सुयोममें (१५८०ई०) पौराणिक कथा बांचकर जीविका निर्वाह करने- कत्ल खानने पठान सिपाही संग्रह कर उड़ोसे पर | वाला । २ नाटकको वर्णना करनेवाला, बड़ा नक्काल ।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६७६
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