पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६६६

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कण्ठरोग बढ़नेपर बापटेसिया तथा कार्बो-वेजिटेबिलिस दिया | कष्ट मालूम नहीं पड़ता। नोंद टूटनेसे स्वास्था बोध जाता है। होता है। यह रोग पांच सात दिनमें मिटता है। गलयन्थिप्रदाह (Tonsilitis)-गलदेशमें किसी स्थान खास रुकनेसे मृत्युका भय रहता, नहीं तो केवल पर प्रदाह उठनेसे यह रोग होता है। यह रोग भी, कष्ट पड़ता है। नाना प्रकारका है। किन्तु स्तन्यपायो शिशुसन्तानको चिकित्सा-प्रथम अवस्थापर किसी पात्रमें उण्या जल गलग्रन्थिप्रदाह अधिक नहीं सताता। पांचसे दश डाल थोड़ा कपूर और पाध छटांक विनिगार छोड़ वर्ष तक इस रोगका प्राबल्य रहता है। फिर पचास देते हैं। फिर सांसको एकाएक ऊपर चढ़ा इसका वर्षको अवस्थामें भी गलग्रन्थि-प्रदाह उठ खड़ा होता • उत्ताप ग्रहण किया जाता है। धम लगनेसे किसी है। यह रोग सकल ऋतुमें लगता और शीतकालमें कारण यदि अधिक खांसी पाये, तो शयनकाल विशेष प्रबल पड़ता है। शीतल वा हिम एवं पाई मृटु विरेचक और प्रातःकाल भेदक पौषध व्यवहारमें वा दूषित वायुके सेवन और शीत पैत्तिक प्रकृति दोषके लाये। उष्ण जलमें लवण और राजसप मिला कारण गलग्रन्थिप्रदाह उतपन्न होता है। यह रोग रोगीके हाथ-पैर डबाकर रखना चाहिये। पहले यह उसी मनुष्यको प्रायः आक्रमण करता, जो देखने में रोग होनेसे चिकित्सक फली काट डालते थे। फिर अच्छा लगता है। गण्डमाला रोग अच्छा होने पोछे: कोई तेज़ाबसे उसे उड़ाही देता था। किन्तु उसमें भी गलग्रन्थि प्रदाह उठा करता है। यह रोग लगनेसे भी अनिष्ट समझ कोई कोई अस्त्रचिकित्सा द्वारा पहले रोगी विशेष स्वस्थ अवस्थामें रहता, कभी कभी रक्त निःसारण किया करते हैं। दुवैल, मन्दमोजो उदरमें गड़बड़ पड़ता है। गलगन्धिप्रदाहका लक्षण एवं अस्वस्थ व्यक्ति यह रोग लगनेसे बहुत दुबला. हो शीतबोध, कम्पन, चर्ममें उत्ताप, उत्तेजित नाडी. जाता है। ऐसौ अवस्थामें रक्त निकालना न चाहिये। कृष्णा, शिरःपौड़ा अथवा क्षुधामान्दा, असुखबोध और सहज उपायसे चिकित्सा करना उचित है। २ ड्राम प्रत्यङ्गमें व्यथा वा शोथ है। चूंट उतारने में कष्ट नमकका तेजाब ड्राम के जलमें मिला कईसे साव- मालम देता, मानो गलदेशको कोई दबा लेता है। धानतापर प्रलेप लगाते हैं। दिनको डिकाक्सन अव घण्टे दो घण्टे में सामान्यसे अति दारुण यन्त्रणा, प्रदाह । सिनकोना, टिक्चर सिनकोना और एसेटेट अव अमो- और निगलनेकी इच्छाका उगमन होता है। चूंट निया प्रयोग करना चाहिये। इस औषधको कियत- उतारने में कभी कभी इतना कष्ट पड़ता, कि आक्षेप काल कण्ठमें दवा पिछे निगलना कहा है। कोई पर्यन्त श्रा लगता है। इस रोगमें खांसीका वेग बढ़ता कोई इस रोगमें पदतल छेद रक्त निकाला करता है। और कफ निकलता है। कण्ठमें दोषका सञ्चार होता होमियोपाधिक मतसे इस रोगपर बेलोडोना, है। खासप्रश्वास कष्टसे चलता है। कण्ठ घरघराने माकु रियास, हेपार, आर्सेनिक, साइलेसिया प्रकृति लगता है। कभी कभी रोग कठिन होनेसे बिलकुल प्रयोग करते हैं। स्वर रुक जाता है। किसी किसी स्थानपर गलेका । दुग्धपोष्य शिशुवोंके एकप्रकारका जो कण्डशोथ शोथ अत्यन्त वृद्धिको प्राप्त होता है। निखास छोड़ते | होता, उसे अंगरेजीमें थश ( Thrush ) और हिन्दौमें समय वेदना मालम पड़तो, कभी कभी सांसतक | मुहाना या मुंहावां कहते हैं। इस रोगसे मुंहमें रुकती है। यह रोग अति पीड़ादायक है। सचराचर एक प्रकार कुकुरमुत्ता उत्पन्न हो जाता है। मुखमें गलग्रन्थिप्रदाह सातसे चौदह दिनतक रहता है। पहले छोटे-छोटे सफेद दाग उठते, जो बांसको गांठ शोध काट न डालनसे बात कहते, वमि करते या जैसे देख पड़ते हैं। रोगोको ज्वरबोध होता है। खांसते समय फट जाता है। सोते समय भी वह तन्द्रा, उदरामान, शूलव्यथा, अजीर्ण रोग प्रभृति फटा करता, किन्तु उस अवस्थामें रोगीको अधिक लक्षण झलकने लगते हैं। शिशु स्तन्यपान करने में Vol. III. 167