पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६५३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६५२ कण-कणाटौर कण (सं० पु०) कणति अतिसूक्ष्मत्वं गच्छति, कण- । कणप्रिय (सं.पु०) सूक्ष्मचटक, गौरैया, चिरैया। पचाद्यच । १ लेश, दाना। २ धलिका क्षुद्रांश, कणभ (सं० पु०) कण इव भाति, कण-भा-क। खाकका जरी। हिमलव, बरफका तबक। ४ जल- १ अग्निप्रकृति कीटविशेष, एक नेशदार मक्खी। इसके विन्दु, पानीका कतरा। ५ अग्निस्फुलिङ्ग, पागको काटनेसे विसर्प, शोथ, शूल, ज्वर, वाम और शरीर को चिनगारी। ६ रत्नमुख, जवाहरका रुरू। ७ शस्य- अवसन्नताका वेग बढ़ता है। (भावप्रकाश ) २ पुष्यवृक्ष- मञ्जरी, गल्लेको बाल। ८ परमाणु, जरी। अतिसूक्ष्म, विशेष, एक फलदार पेड़। ३ कोटभेद, एक कोड़ा। निहायत बारीक। १० तण्डल प्रकृतिका क्षुद्र अंश इसके काटनेसे पित्तज रोग लगते हैं। ४ अन्यजातोय "कणान् वा भक्षयेदव्द पिण्याकं वा सक्वविशि।" ( मनु १२।९२) कोट, किसी किस्मका कोड़ा। वह चार प्रकारका १० पिप्पली, पोपल। ११ वनजीरक, जंगली जोरा। होता है-त्रिकण्टक, कुणो, हस्तिकक्ष और अप- कणकच (हिं. पु०) १ कपिकच्छ, केवांच। २ करज, राजित। इसके काटनेसे शरीर में खयथ, अङ्गमर्द करौंदा। तथा गुरुताका बोध पाता और दष्ट स्थान काला कणगच, कचकच देखो। पड़ जाता है। ( मुत) कागज, कथकच देखो। कणभक्ष (सं० पु०) कणान् भक्षयति, कण-भक्ष-ख ल। कणगुग्गुलु ( सं० पु०) कणचासो गुग्गुलुश्चेति, कर्मधा०।। १ खामचटक, एक चिड़िया। २ कणाद। कणाद देखो। १ गुगगुलुविशेष, एक गूगुल। इसका संस्कृत पर्याय- कणभक्षण (सं० लो०) शस्यलेश भोजन, नाजके गन्धराज, स्वर्णकणे, सुवर्ण, कनक, वंशपति, सुरभि किनकोंका खाना। और पलस्कष है। राजनिघण्टके मतसे कणगुग्गुलु कणभुक् (सं० पु०) कणान् भुत्तो, कण-भुज-क्विम् । कट, उष्ण, सुगन्धि, रसायन और वायु, शूल, गुल्म, कणाद-ऋषि। उदरामान तथा कफनाशक है। कणमूल ( स० लो०) १ पिप्पलोमूल, पिपरामूल । कणजिविका ( स० स्त्री०) १ महासमङ्गा, कगहिया। २ पञ्चतिक्त वृत, पांचकड़वी चीजीका घो। २ सारिवा, अनन्तमूल । ३ बहुपत्रिका, भुई आंवला। कण लाभ (सं० पु.) कणानां लाभो यस्मात्, बहुव्री। कणजीर (सं० पु०) कणवासी जौरश्चेति, नित्य पेषण करनेका एक यन्त्र, चक्को। २ श्रावत, गिर्दाब, कर्मधा। खेतजीरक, सफेद जीरा।। कणजीरक (सं० लो०) कर्ण क्षुद्रं जीरकम्, कणजीर कणशः ( स० अव्य०) कण वीसार्थे शस्। पल्य स्वार्थ कन। क्षुद्रजीरा, छोटा जीरा। इसका संस्कृत अल्य, कौडी कौड़ी, थोड़ा-थोड़ा। . पर्याय-हृद्यगन्धि और सुगन्धि है। भावप्रकाशके कणही (सं० स्त्री०) लताशिरीष, वल्लिशिरीष। मतसे कणजोरक रुक्ष, कटु, उष्णवीर्य, अग्निदीपक, कणा (स. स्त्री०) कण-टाप् । १ जीरक, जीरा। लघु, धारक, पित्तवधक, मेधाजनक, गर्भाशयशोधक, २ पिप्पली, पोपल। ३ कुम्भोरमक्षिका, एक मक्खो । पाचक, बलकारक, शुक्रवर्धक, रुचिकारक, कफनाशक, ४ खेतजौरक, सफेद जीरा। ४.कृष्णजीरक, काला चक्षुका हितजनक और ज्वर, वायु, उदरामान, गुल्म, । जीरा। ६ अल्प, थोड़ा। वमि तथा प्रतिसार रोगनाशक है। जौरक देखो। "कदलीफलमध्यस्थ कणामावमपक्वकम् ।" (तिथ्यादितत्त्व ) कणजीरा (हिं.) कणजौरक देखो। कणाच (हिं. पु०) केवांच।। कणजीणे (सं० स्त्री०) खेतजौरक, सफेद जीरा। कणाजटा (सं० स्त्री०) पिप्पलीमूल, पिपरामूल । कणनिर्यास (संपु०) गुगगुलु, गूगुल। कणाटोन (सं० पु०) कणाय अटति, कण-पट-इनन् कणप (सं० पु०) कण-पा-क। अस्त्रविशेष, बरछा, पृषोदरादित्वात् दीर्घत्वञ्च। खननपक्षा, खड़रैचा । भाला। । कपाटौर (स० पु.) कण-अट-ईरन् । कणाटीन देखो। भंवर।