६३९ कटुआ-कटकवर्ग लेह, स्खेद, लेद तथा मलका नाशक, अबको रुचिका रक। ११ लशन, लहसुन। (वि.) १२ पप्रिय, कारक, कण्ड, व्रण एवं कृमिका विनाशक और नागवार। घनीभूत रसका भित्रकारक बताते हैं। कटरस __"दुर्योधन कर्यच कटुकाच नाभाषकाम्।" (मारत, अनुत ०७१) सकल स्रोतको आवरण और श्लेष्माको निवारण १३ तीक्ष्ण, कटु, उण, तेज, कड़वा, गर्म । करता है। | कटकण्टक (सं० पु.) शामलोवृक्ष, सेमरका पेड़। कटरस अधिक परिमाणमें व्यवहार करनेसे शुक्र | कटकवय (सं'• क्ल.) कटकानां कटुरसानां वयम्, घटता, ग्लानि, तृष्णा, मूळ, वेदना एवं सूचोवेधवत् ६-तत् । विकट, तोनों कड़यो चौजें-अर्थात् सोंठ, पौड़ाका वेग बढ़ता, अवसाद लगता, दौबख्य दौडता, मिर्च और पीपल । कण्ठ जलता, शरीरपर ताप चढ़ता, बल चीण पड़ता, कटुकत्व (सं० लो०) कटकस्य भावः, कटुक-त्व। वायु तथा अस्निके बाहुबसे भ्रम, मद, कम्म एवं तस्य भावस्व नलो। पा ५११६। कटुता, चरपराहट, भेद चलता और बाहुके पार्श्व में अन्यान्य वायुजन्य कड़वापन। विकार उठता है। कटकन्द (सलो . ) कटः कन्दो मूत्रमस्य । १ मूलक, - कटपटोल, कड़वा परवल। १० चम्मकक्ष, मूली। (पु०) २ शिशुवृक्ष, सहोंजन का पेड़। चम्पेका पेड़। ११ चीनकपूर, चीना कपूर । १२ कटी- ३ बाईक, अदरक। ४ लशन, लहसुन। लता। १३ अकक्ष, मदारका पेड़। १६ जलवण- कटकन्दरी (स• स्त्री. ) आषधि विशेष, एक जड़ी- विशेष, एक पनिहा घास। १५ छत्रकविष, छातका बूटी। कोङ्कनमें इसे गोविन्दो कहते हैं। कट- जहर। १६ कुटजतरु, कुटकोका घेड़। १७ राज- कन्दुरिका उष्ण, तिक्त और वात एवं कफ तथा सर्व प, बड़ा सरसों। विसूची प्रादि मिटानेवाली है। (वैद्यकनिधए) _ (वि.) १८ तिक्त, तोता। १८ कषाय, कसैला। कटुकफल (सं० लो०) कटक फचमस्थ, बहुव्रो । २.विरस, बदज़ायका। २१ परयोकातर, हासिद, ककोलक, सौतलचीनी। दूसरेको शानशौकत देख न सकनेवाला। २२ अप्रिय, कटकभक्षी (सं० पु०) एक गोत्रप्रवर ऋषि । नागवार। २३ तीक्ष्ण, तेज़। २४ उष्ण, गमै। कटुकरन (स• पु०) करन । २५ सुरभि, खुशबूदार । २६ दुर्गन्ध, बदबू देनेवाला। कटुकरस (सं० पु०) षडरसों में एक पन्यतम रस, २७ कुत्सित, खराब। २८ कटुरसविशिष्ट, कड़वा।। चरपराहट, कड़वापन। कटुआ (हिं० पु० ) कौटविशेष, बांका, एक कौड़ा। कटकरोहिणी (स० स्त्री०) कटका' सती रोहति, यह धानके पड़को काटता है। २ एक सिंचाई। कटुक-रुह-णिनि। कटकी, कुटकी । इससे नहरका पानी सोधे खेतमें पहुंचता है। कटकवर्ग (सं• पु०) कटक द्रव्य समूह, कड़यो ३ मुसलमान। छिक्का या साढ़ी उतारे दूध के दहीको चौजोंका टेर। शिशु, मधुशिशु, मूलक, लशुन, सुमुख, 'कट या दही कहते हैं। (सफेद तुलसी), सित (सौंफ), कुष्ठ, देवदारु, कटुक (सं० स्त्री०) कटना कटुरसानां वयम्, कटु | सोमराजौके वोज, शङ्खपुष्पों, गुग्गुल, मुस्तक, लात. संज्ञायां कन्। १त्रिकट। सोंठ, मिर्च और पीपल | लिका, शुकनासा एवं पोलु, प्रकृति पिप्यत्यादि तीनोंका नाम कटुक है। २ मरिच, मिर्च । ३ कटुकी, /- (पिप्पली, पिप्यत्तीमून, चञ्य, चित्रकमून, शुढी, कुटको। (पु.) ४ कटुरस, कड़वापन । ५ पटोल, | मरिच, गजपिप्पली, रेणुक, एला, यमानो, रन्द्रयव, परवल।.६ सुगन्धितण, खुशबूदार घास । ७ कुटज प्रवृक्ष, जोरक, सर्षप, महानिम्ब, मदनफल, हिड्नु, वृक्ष, कुटकीका पेड़। ८ अर्कवृक्ष, मदारका पेड़। ब्राह्मणयष्ठिका, मूर्वामूल, पतोस, वचा, विडङ्ग तथा - राजसर्वप, ब्रड़ा. सरसों। १० आद्रक, अद' कटुको ), सुरसादि ( तुलसो, श्वेततुलसो, गन्धपलाश,
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६४०
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