पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६३५

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कटरकटर-कटहल विशेष, एक नाव। इसमें डांड नहीं लगता। कटर कार्तिक मास इसके फूलनेका समय है। कटसरैया तख तोदार चरखियोंके सहारे पाया-जाया करता है। अड़ से की भांति कंटीली होती है। कटरकटर (हिं.क्रि.वि.) १ उच्चैःवरमें, बुलन्द कटस्थल (सं० लो०) १नितम्ब एवं कटि, चतड आवाजके माथ। २ बलपूर्वक, जोरसे। और कमर। २ हस्तिकपोल, डाथोकी कनपटी। कटरना (हिं० पु०) मत्स्यविशेष, एक मछली। । कटहर, कटहल देखो। कटरपटर (हिं.क्रि.वि.) जतेके जोरसे। कटहरा (हिं० पु.) १ कटघरा, काठका घर। कटरा (हिं. पु०) १ क्षुद्र वर्गाकार पण्यशाला, २ मत्स्य विशेष, एक मछलो। यह उत्तर-भारत और छोटा चौकोर बाजार। २ पंडवा, भैसका नर पासामको नदियों में मिलता है। बच्चा। कटसारिका (सं० स्त्री०) कटसरैया, एक झाडो। कटरिया (हिं० पु.) धान्य विशेष, किसी किस्मका | कटहल (हिं. पु०) पनस, चक्को। (Artocarpus धान। यह आसाममें अधिक उपजता है। integrifolia) यह एक वृहत वृक्ष है। उत्तर व्यति- . कटरी (हिं० स्त्री०) १धान्यरोगविशेष, धानको एक रेक कटहल भारतवर्षे और ब्रह्मदेश में सब स्थानों- बीमारी। नदीके तटको निम्नभूमि, दरयाके किना- पर लगाया जाता है। पश्चिमघाट पर्वतके वन में इसके रेकी नौची जगह। इसमें दलदल रहता और नर खभावतः उत्पन्न होनेका अनुमान बांधते हैं। कट- कट लगता है। हलका अर्धगोलाकति शिखर स्यामवण पत्रों से कटरेती (हिं० स्त्रो०) अस्त्रविशेष, एक औज़ार। मण्डित रहता है। शाखा विकटाकार फलो के भारसे इससे लकड़ी रतते हैं। झुक पड़ती है। सह्याट्रि पर्वतके सदा हरिवर्ण वनमें कटल्ल (हिं० पु०) १ बूचड़, कसाई। यह शब्द कटहल लगाया और प्रकृत अवस्थामें भी पाया जाता मुसलमानो को वृणाके साथ सम्बोधन करनेमें भी है। पूर्व पर्वतपर यह आपसे आप होता है। पाता है। ___एक गत खोदकर गाबरसे भर देते हैं। फिर उसमें कटवा (हिं० पु. ) मत्स्यविशेष, एक मछली। जन या जुलाई मास कटहलका वौज डाला जाता इसके गलफड़ों के निकट कण्टक रहते हैं। है। ७८२ ई० को ऐडमिरल रोडनी इसे जमैका ले कटवां (हिं. वि. ) १ कटा हुघा, जो बीच में | गये। ब्राजिल मारिशास आदि स्थानों में भी यह रुका न हो। लगाया गया है। कटवासी (हिं.पु.) किसी किस्म का बांस । यह नव पल्लवों पर क्षुद्र एवं रुक्ष कुन्तल रहते हैं। पोला नहीं होता। कण्टक भरे रहते हैं। गांठ शाखावों पर मण्डलाकर उस्थित रेखायें देख पड़ती पास-पास पड़ती है। कटवांसी बांप सीधा नहीं | हैं। पत्र चर्म-सदृश, चिक्कण, अपर प्रकाशमान, नीचे बढ़ता और घना जमता है। इसे ग्रामको चारो ओर, रक्ष और अण्डाकार होते हैं। मध्यपशु का नीचे लगा देते हैं। प्रधान रहती है। उसकी दोनों ओर चारसे सात कटवण ( स० पु.) कटः उत्कट: व्रणः युद्धकण्डरस्य, इश्चतक १८ पाखीय शिरायें निकलती हैं। पत्रों के बहुव्री०। भीमसेन। भौमसेन देखो। नोचेका अनुबन्ध बड़ा होता है। उसका चौड़ा प्राधार कटशर्करा (सं० स्त्रो०) कटः नल: शर्करेव मिष्टरस पत्रों से मिला रहता और गिर पड़ता है। फल वृहत् त्वात् यस्याः, बहुव्री०। १ गाङ्गेष्टी लता, एक बेल ।। लगता, क्षुद्र शाखावों पर लटकता और दीर्घाकार एवं २ टी चटाईका एक टुकड़ा। मांसल दिखता है। उसका आधार सान्द्र ार गोला- कटसरैया (हिं. स्त्री०) वृक्षविशेष, एक पेड़ । इसमें | | कार होता है। वल्कलपर तोक्षण अणियां उभर पाती खेत, पोत, रक्त और नील कई प्रकारके पुष्प पाते हैं। हैं। वौज वृक्क-सदृश और तैलमय रहता है।