६२८ कटक मध्य मध्य साल, तमाल, पाम, खजुर प्रकृति वृक्ष कर कहा-यदि हम उपस्थित युद्धम जीत सकेंगे. भी लग जाते हैं। ! तो लौटते समय सब लोग इसी गिरिशृङ्ग पर जा श्य भाग पार्वतीय है। यह जिलेके पश्चिम | नमाज पढ़ेंगे। राजा-उद-दीनका जय हुधा था। प्रान्तमें अवस्थित है। पश्चिम प्रान्त में अनेक क्षुद्र क्षुद्र उन्होंने फिर ससैन्य शृङ्गके ऊपर जा नमाज पढ़ी। पर्वत हैं। इस भूभागमें साखका तख ता, लाख, उन्होंने वहां सुन्दर मसजिद बनवा दी। गोंद, रेशमका कौड़ा, शहद और सन वगैरह हिन्दू उक्त शृङ्गको मण्डप कहते हैं। शृङ्गके मिलता है। नीचे ही मण्डपग्राम है। पतिप्राचीन कालको वहां कटकके पर्वत छोटे छोटे हैं। सर्वोच्च शिखर हिन्दू मण्डपयन करते थे। . २५०० फीटसे अधिक ऊंचा नहीं। किन्तु सभी २ उदयगिरि भी पसिया गिरिमालाके चार पर्वत अति प्राचीन कालसे हिन्दवोंके पवित्र तीर्थस्थान शृङ्गों में एक शृङ्ग है। यह असिया गिरिमालाके जैसे प्रसिद्ध हैं। प्रधान प्रधान पर्वत यह हैं पूर्वभागमें अवस्थित है। यहां हिन्दुवों और बौहोंके १ असिया पहाड़ (पालमगीर) अनेक स्थानों देखनेको बहुतसी चीजें मौजूद हैं। शृङ्गके उच्च पर जुड़ा है। इसका प्राचीन नाम चतुष्पीठ है। भागसे पाददेश पर्यन्त परिदर्शन करनेपर असंख्य यहां नाना स्थानोंसे हिन्दू तीर्थ करने आते हैं। इसके | देवमूर्ति देख पड़ती हैं। बौहोंके प्राधिपत्यकाल चार शृङ्ग बड़े हैं। इनमें एक विरूपा नदीको यहां अनेक सङ्घाराम और बौद्ध चैत्य विद्यमान रहे। ओर है। आजकल इसे 'पालमगीर' कहते हैं। वर्तमान समय उनका ध्वंसावशेष पडा है। इस शृङपर एक ची मसजिद खड़ी है। १७१८-२. उदयगिरिक पाददेश पर एक प्रकाण्ड पद्मपाणि ई०को उड़ौसके शासनकर्ता शुजा-उद-दीन्ने उसे | बुद्धमूर्ति है। यहां पानसे दर्शकको पहले मूर्ति बनवाया था। मसजिदके सम्बन्ध पर निम्नलिखित | देख पड़ती है। मूर्ति प्राय: 2 फीट ऊंची है। उपाख्यान प्रचलित है- एक पत्थर खोदकर यह मूर्ति गढ़ी गयी है। इसका ____एक रोज मुहम्मद व्योममार्गसे जाते थे। साथमें अधांश वनसे पाच्छन्न पार कुछ अंश भूगर्भ में प्रोखित उनका दलबल भी रहा। ममाजके समय सब नखती है। पद्मपाणिक वाम हस्तमें पद्म है। नासिका, गिरिशृङ्गपर उतर पड़े। गिरिका शृङ्ग हिलने लगा बाहु और वक्षःस्थलमें अलङ्कार शोभा देता है। और उन्हें धारण कर न सका था। उस समय दक्षिण हस्त और नासिका दोना पङ्ग टूट गये हैं। मुहम्मद नलसी गिरिको पभियापदे मसजिदके पास पद्मपाणिको मूसिके आगे थोड़ी दूर चलनेपर ही पाकर ठहर गये। मुहम्मदने जहां नमाज़ ध्वंसावशेष मिलता है। इसीके निकट पर्वतपर . पढ़ी, वहां पाज भी एक पत्थर पर उनके पदको एक कूप बना है। विस्तारमें कूप २३ फीट है। । रेखा बनी है। पहले यहां जल मिलता न था। जल निकालनेको २८ फीट लंबी डोरी लगती है। मुहम्मदके अपनी यष्टि द्वारा प्राधात लगाते ही स्वच्छ चारो ओर पत्थरका घेरा है। वह साढ़े ८४ फोट सलिलका प्रस्रवण बह चला। मुसलमान यात्री। लंबा और ३८ फोट ११ इञ्च चौड़ा है। प्रवधके मुहम्मदके पदका चित्र और उक्त प्रस्रवण देखने पथमें दो बड़े बड़े स्तम्भ खड़े, अाजकल जिनके मस्तक बराबर पाया करते हैं। शुजा-उद-दीनने कटक टूट पड़े हैं। पाते समय इराकपुरमें शिविर समाया था। वहींसे शृङ्गसे ५० फीट ऊपर वनमें एक चैत्य है। बांड उन्हें गिरिशृङ्गोखित नमाजको ध्वनि सुन पड़ा। उनके | राजावोंके समय यहां बौद्ध यसियोंका समावेश रहता पनुचर नमाजको सुन अधीर इये और सबके सब था। बौषोंका अवसान होनेपर हिन्दुवोंने यहां पनेक गिरिजाभिमुख जाने लगे थे। किन्तु शनाने निषेध। देवदेवी-मूर्ति निर्माण कौं। देवदेषी मुसलमानोंने.
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६२९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।