१२२ कछार-कजरा दक्षिणका बराक, भूवंश, रेंगती, तिलाइन तथा सिद्धे- मिर्च और तरकारी भी बो देते हैं। अखको छोड खर है। भूवंशको घाटो बहुत ढाल है। चारो ओर दूसरी चीज़में खाद नहीं डालते। सिलहटसे प्रत्येक जंगल लगा है। बराक नदी १३० मोल .बही वर्ष ३ लाख मन चावल मंगाया जाता है। चाय है। पहट १००से २०० गज़ तक चौड़ा है। साल- बाहर भेजते हैं। किन्तु इस जिले में व्यवसायका कोई भर बराबर नाव चल सकती है। धलेखरी, काटा केन्द्रस्थल नहौं। बराक नदौसे चायके बागोंतक खाल, घाघरा, सोनाई, जोरी, जातिंगा, मदुरा, बदरी सड़कें लगी हैं। कछारमें तीन तहसीलें हैं-सिल- और चौरी नदी बराकको सहायक है। वर्षा ऋतुमें चर, हैलाकांदी और गुनजोंग। जलवायु शीतल रंगती तथा तिलाइन पर्वतके बीच चातला प्रान्त १२ और भाद्र है। कछारमें भूकम्प अधिक आता है। मोल लम्बा और २ मोल चौड़ा इद बन जाता है। १८६८ ई०को जो भूकम्प पाया, उसने सिलचर बराक नदीके उत्तर सारे मंदानमें कृषिकार्य होता नगरको ठिकाने लगाया और नदियों को उलटा है। चारो ओर सघन वन और सरोवर रहनेसे कछार बहाया था। रोगों में प्रधान ज्वर, अजीर्ण, संग्रहणी. का प्राक्कतिक दृश्य अनुपम है। मृत्तिकामें निग्धता विसूचिका और शीतला है। अधिका देख पड़ती है। | कछियाना (हिं• पु०) वषकोंके निवासका स्थान, इस जिलेमें धातुको कोई खानि नहीं। किन्तु । काछियों का महला। वनमें धन भरा है। जारूल और नागकेशरके वृक्ष कछु, कुछ देखो। अधिक मूल्यवान् होते हैं। बङ्गालको कछारसे नाव, कछुआ (हिं० ) कच्छप देखो। लद्वा, बांस, बेंत और फस भेजते हैं। जंगल काटने कछुई (हिं०) कञ्चपी देखो। वालीको लेसन्स लेना और बराक पार करनेवालोंको | कछुक (हिं. वि.) कुछ, थोड़े। 'कछुक विदारसि सियालतेख घाटपर महसूल देना पड़ता है। चायके अङ्ग।' (तुलसो) सन्दक बनानेको कई कारखाने हैं। गवरनमेंटके | कछुवा (हिं०) कच्छप देखो। व्यतिरेक दूसरा हाथी पकड़ नहीं सकता। कृषि- कछ. कुछ देखो। काय में भैसे चलते हैं। कछोटा (हिं. पु.) काछ, कछनी, लांग। लोकसंख्या तोन लाखसे ऊपर है। यहां कछारी, कूकी, लुसाई, नागा और मिकौर रहते हैं। स्त्रियां कज (सं० ली.) के जले जायते, क-जन-ड। मणिपुरी खेस नामक बस्त्र और मशहरी खब बनाती १ कमल, पद्म। २ अमृत। (फा० स्त्री०) ३ वक्रता, हैं। पुरुष पौतलके बरतन तैयार करते हैं । प्रधानतः टेढ़ापन। ४ दोष, ऐव। लोग चावल या चायके काममें लगे रहते हैं। सिल- कजक (फा• पु०) हस्तीका अनुश, हाथी हांकने- 'चरमें देशी फौजका हेडक्वाटर है। जनवरी मास का आंकुस। . यहां एक बड़ा मेला लगता है। सोनाई, सियाल- कजकोल (हिं. पु.) कशकोल, भौख मांगनेका तेख, बरकल, उधरबन, लक्ष्मीपुर और हैलाकादी भी | खप्पर। व्यवसायका स्थान है। कजनी (हिं. स्त्री०) खरदनी, बरतन साफ करनेका सब लोग चावल खाते हैं। वर्ष में तीनवार चावल | एक मौज़ार। इससे तांबे या पीतल के बरतन खुरच उत्पन्न होता है-पाहस, साइल और आमन। जन खुरच साफ़ किये जाते हैं। मास साइलको बागांमें जमाते, दूसरे मास बागसे | कजपूती, कयपूतौ देखो। - उखाड़ मंदानमें सगाते और दिसम्बर या जनवरी मास कजरा (हिं. पु.) १ कन्नस, काजल । कमवो देखो। - काट.लाते । कुछ कुछ सरसों', 'तिल, दाल, अख, वृषभविशेष, एक बैल। इसको पांखें काली रहती
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६२३
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