बेंत। कच्छपोलि-कच्छुरा ३ वीणाविशेष। कच्छपके पृष्ठको भांति तोबो चपटी कच्छी (हिं. वि.) १ कच्छदेशोय, कच्छसे सरोकार रहनसे ही इसका नाम कच्छपी वा कूर्मी वीणा पड़ा। इसका नाम कच्छपा वा कूमा वीणा पड़ा रखनेवाला।२ कच्छदेशजात,कच्छ में पैदा होनेवाला। है। स्मिथ साहबके मतमें लायार, टेस्टिडो और (पु.) ३ अखविशेष, किसी किस्म का घोड़ा। कच्छपी-तीनों एकजातीय यन्त्र हैं। फिर युरोपीय यह कच्छमें उत्पन्न होता है। इसकी पीठ गहरी गोटर यन्त्रके साथ भी इसका पनेक सौसादृश्य देख रहती है। पहता है। युरोपीय गोटर यन्त्रको प्राकृति देखने- कच्छ (सं. स्त्री०) कषति देहम्, कष-ज छान्ता- भालने पर कच्छपीसे ही उसकी मृष्टि मानना होतो देशव पृषोदरादित्वात् इवः। वर्षश्च। उम् ।। है। जर्मन गोटरको 'जितार' कहते हैं। वह कच्छपीके । क्षुद्र कुष्ठ के अन्तर्गत एक रोग, खाज, खुजन्तो। कण्ड, अवयवका भेदमात्र है। सितार देखो। ४ सरस्वतीको दाह और स्रावयुक्त सूक्ष्म सूक्ष्म जो बहुसंख्यक वीणा। पौड़का पड़ती, उसे विद्दमण्डली पामा कहती है। कच्छपोलि, कछपोलिका देखो। फिर दोनों हाथ पौर हथेली को पीठपर तीव्रदाहयुक्त कच्छपोलिका (सं० स्त्री०) जलवेतम, एक प्रकारका होनेवाली पामा हो कच्छ कहातो है। (माधवनिदान) चिकित्सा-१ सोमराजी, कासमद, पनवर, हरिद्रा कच्छभू (सं० स्त्री० ) जलयुक्त भूमि, दलदस।। तथा गणिकारिका प्रत्येक समभाग दधिके मस्तु कच्छरुहा (सं० स्त्री०) कच्छे रोहति, कच्छ-सह और कांजोके साथ पोस प्रलेप लगाना चाहिये। क-टाए। इगुपयशाप्रोकिरः कः । पा श११३५। १ दूर्वा, दूब । २ वासकके कच्चे पत्ते पौर हरिद्रा गोमूवमें रगड़ २ नागरमुस्ता, नागरमोथा। प्रलेप चढ़ाने पर तीन दिवसमें कच्छ रोग विनष्ट होता कच्छा (सं. स्त्री०) कचं पश्चात् प्रदेश छादयति, है। ३ हरिद्राको पोस दो पल गोमूत्रके साथ पीना कच-छद-णि-उ-टाए। १परिधेय वस्त्रका अञ्चल, चाहिये। ४ हरीतकीको गोमूवमें पका भक्षण करना लांग। २ चौरिका, झोंगुर। ३ वाराहीकन्द । उचित है। ५मदारके पत्तंका रस हरिद्राककके ४ भद्रमुस्ता। ५ खेतदूर्वा, सफेद दूब। . साध सर्वपलमें पका मर्दन करते हैं। चतगण कच्छा (हिं• स्त्री०) नौकाविशेष, एक नाव। यह दूवाके रसमें तैल पका सेवन करना चाहिये। (चक्रदप) बड़ी होती है। इसके सिरे चपटे और चौड़े कच्छुन्ना, कछ नौ देखो। . . रहते हैं। कच्छ नो (सं० स्त्री.) कच्छ, हन्ति, कच्छ -हन्-टक- कच्छाट-एक प्राचीन ग्राम। यह वङ्गदेशके अन्तर्गत डो। चमनुष्यकर्ट के च। पा शरा५३। १ पटोल, परवल । वरदके मध्य पवखित है। (असम राय) २ हवुषाफलक्षुप, एक झाड़ी। कच्छाटिका (सं० स्त्री०) कच्छ-एव बाहुलकात् पटन् कच्छ मतो (स• स्त्रो०) कच्छ : साधनत्वेन अस्त्व- स्वार्थ कन् टाप् च। कच्छ, सांग। स्थाम, कच्छ -मतुप्-टाप्। शकशिम्बो, खजोहरा। कच्छान्त (सं० पु०) ह्रद वा नदीका तौर, भील कच्छुर (सं० त्रि.) कच्छु रस्यास्ति, कच्छ, र इखश्च । या दरयाका किनारा। कच्छा इस्खत्वञ्च। पा रा१०।१ कच्छरोगयुक्त, खारिश्तो, कच्छान्तरहा (सं• स्त्री०) खेतदूर्वा, सफेद दूब।। खुजलीवाला। २ परस्त्रीगामी, रंडीबाज । ३ पामर, कच्छार (सं० पु.) कच्छ, एक देश। यह शतभिषा, | नापाक, कमौना। पूर्वभाद्रपद और उत्तरभाद्रपदके अधिकृत देशोंके कच्छुरा (सं० स्त्रो०) कच्छ कण्ड राति, ददाति, अन्तर्गत है। (संहिता) कच्छ-रा-क-टाए। पातश्योपसमें । पा श११३८ । १शूक- कच्छाराहा (सं० स्त्री०) स्वर्णकेतकी, सुनहला केवड़ा। शिम्बो, खजोहरा । २ दुरालभा। ३ यठो । ४ यवास। कच्छालबारक (सं• पु.) काशवय, कांस। ५ पाहिणो, खिरनो। ६ वेश्या स्त्री।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६२०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।