पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६०८

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कचपाश-कचलोइ कचपाश, कचपच देखो। . कचरो (हिं॰ स्त्रो०) १ मेधिया, पेहंटा। यह कच दिया (हिं. वि.) १ अप्रौढ़ तल, जिसके एक बैल है। ककड़ीको भांति कचरी खेतमि फैल कच्चा पैदा रहे। २ होनमति,' ऊटपटांग बकन जातो है। फल अण्डाकार एवं पीतवर्ण रहता पार वाला, जो बातका पक्का न हो। खान खटमिट्ठा लगता है। कच्चो कचरोका मुखा कचबची (हिं० स्त्री०) सितारा, बुदो। स्त्रियां कर धौम भूननसे अच्छी तरकारी बनती है। इसको इसे अपने मस्तक और कपोलपर देखाने के लिये लगा सोंठ डालनसे चटनी भी बहुत अच्छो होतो है। इसे लेती हैं। कचबचौ ख ब चमकती है। युक्त प्रदेशमें कचेलिया कहते हैं। लोग प्रायः इसे कचमाल (सं० पु.) कच कचवत् कान्ति मलते। सुगन्धके लिये हाथमें रखते और बहुत कम चलते धारयति, कच-मल-अण। धूम, धवां। कोई कोई हैं। २ शुष्क कचरौका शाक। ३ रूई का विनोला। 'खतमाल' भी कहता है। ४ छिलकेदार दाल। . कचरई अमौवा (हिं. पु.) अमौवेका एक रंग। कचलम्पट (हिं. वि.) व्यभिचारो, जिनाकार, इसमें हरेरी रहती है। कचरई अमौवेको लोग जो लंमोटे का सच्चा न हो। अधिकांश सुगन्धके लिये पसन्द करते हैं। धनी व्यक्ति | कचला (हिं. स्त्रो०) १ कालो और चिकनो महो। इसी रंगका भितल्ला रजाई में लगाया करते हैं। प्रथ इससे युक्त प्रदेशमें मकान को कच्ची दीवार उठायो मतः वस्त्र हरिद्रासे रंगा जाता है। फिर उसे हरके जाती है। यह मट्टो बहुत मजबूत होती और पानो जोशांटेमें डाल देते हैं। अन्तको उसे कधीशमें डुबो पड़ते भी अपना गुण नहीं खातो। २ कौवड, कांदा। अनारके छिलकेके जोशांदे में रंगनेसे कचरई अमौवा | कचल (हि० पु.) वृक्षविशेष, एक पेड़। यह होता है। इसके तीन भेद हैं-संदलो, सूफियानी पार्वत्य वृक्ष अनेक प्रकारका होता है। भारतवर्ष में और मलयगिरी। इसके चादह भेद पाये जाते हैं। काष्ठ समान रहते कचरकचर (हिं. पु• ) १ वाक् युद्ध, कचकच ।। भी पत्र में भेद पड़ता है। काष्ठ खत, कठार तथा २ अपक्व फल खानका शुब्द, जो अावाज, कच्चा फल | श्रावतंयुक्त निकलता है। यमुनासे पूर्व हिमालयपर खानसे निकलती हो। ५०००से 2.०० फौट चे तक कचल मिलता है। कचरकूट (हिं. स्त्री०) मारपीट, लात-जता। यह अति सुन्दर वृक्ष है। शिशिरमें पतझार हाता कचरघान (सं० पु.) १ बमबखेड़ा, बेजा जमाव । | है। नवीन पत्र वसन्तसे पहले हो फट आते हैं। २ सन्तानसन्ततिको वृद्धि, औलादको बढ़ती। ३ प्रब- इसके तख्ते मकान् और सन्दक तैयार करने में लता, जोर। ४ मारकूट, पोटपाट । लगते हैं। कचरना (हिं० कि.) १ पददलित करना, दबाना, | कचलोंदा (हिं. पु०) कच्चा लोंदा, कच्चे पाटेका रौंदना। २ भली भांति भोजन करना, अच्छीतरह | पड़ा। खाना, खूब पेट भरना। |कचलोन (हिं. पु०) लवण विशेष. किसी किराकी कचरपचर ( हिं० पु.) १ गिचपिच, भरा पौर | नमक। यह कांचको मट्टीमें जमे हुये क्षारसे तैयार बिगड़ा हुआ। २ कचपच, बतचक्कर। ३ कोचड़, किया जाता है। कचलोन जलमें जल्द नहीं घुलता। कांदा। कचलोहा (हिं• पु०) १ कच्चा लोहा। २ ढोला कचरा, कचड़ा देखो। प्रहार, पधरा वार, न लगनेवाला हाथ। (स्खो०) कचराई (हिं. स्त्री.) दबाई, रौंदाई। कचलोही। कचरिपुफला (सं० स्त्री०) कचस्व रिपुः फलमस्याः, कचलोह (हिं• पु०) व्रणसे छुटनेवासा पानी, जो . बहुब्रो०। शमौहक्ष, छिकुर। पनछा नख मसे पड़ता हो।