पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/६०३

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कङ्काल कामें २४, ललाटमें २, मस्तकमें 8 और ववदेशमैं । जपरी उभय पाखपर सात बुक्कास्थि से एक-एक कर १७ अस्थि होते हैं। इसी प्रकार शरीरके सब अस्थि खनन्वभावमें मिलित हैं। यह सातो स्वाभाविक ३१.हैं। पशु का और नोचे उभय पाखके ५ अस्थि क्वत्रिम युरोपीय चिकित्मकों के मतसे नरकवालमें सब पशुका हैं। वयोवृद्धका बुक्कास्थि १, युवकका मिला कर २२३ अस्थि रहते हैं। यथा-कपानमें २और शिशुका अस्थि उससे भी अधिक अंशों में ८, मुखमण्डलमें १४. कर्णाभ्यन्तरमें ८, कशेरुकामें गठित है। यौवनकालको जब बुक्कास्थि दो खण्ड २३, वक्षमें २६, वस्ति देशमें ११, जय शाखा वा | रहता, तब उसके अपरो खण्डका विद्वान मुष्टि बाङमें ६८ और अधोशाखा वा सक्थिमें ६४ (Manubrium) कहता है। वयोवृद्धिके समय अस्थि हैं। वुक्कास्थि एक हो जाता है। इसके अधोभागसे ____कशेरु मेरुदण्ड स्वरूप है। इसमें २४ प्रस्थि होते उपरिभाग पहले सोधा और फिर मोटा देख हैं। अपर जिसमें ७ अस्थि रहते, उसे ग्रोवा-कशेरुका | पड़ता है। मध्यमें एक-एक कोमलास्थि रहता है। (Cervical vertibrae) कहते हैं। मध्यमें १२ उसे खङ्गाकार कोमलास्थि ( Ensiform or अस्थि रखनेवालेका नाम पृष्ठकशेरुका ( Dorsal xiphoid cartilage) कहते हैं। नरकपालको 'vertibrae) है। अधोभागमें ५ प्रस्थियुक्त देश करोटीमें १ ललाटा स्थि ( Frontal bone),२ पाच- कटिकशेरुका ( Lumbar vertibrae ) कहाता है।। कपालास्थि ( Parietal bone ),१ पश्चात् कपालास्थि कशेर वा मेरुदण्डके तलभावका विकास्थि (Sacrum) (Occipital bone ), १ कोलकास्थि ( Sphenoid), अपर पड़ता है। विकास्थि वस्तिके अस्थिका अंग २ शालास्थि ( Temporal bone), और १ शौषिराखि कहाते भी प्रकत रूपसे मेरुदण्ड का ही सविहित ( Ethmoid ) रहता है। मुखमण्डल में २ नासाखि अस्थि माना जाता है। यह अस्थि त्रिकोणाकार (Nasal bone),२ मायस्थ (Superior maxillary), देख पड़नेसे त्रिक ( Sacrum) कहाता है। यह २ तात्वस्थ ( Palate ), २ गण्डास्थि (Malar ), क्षुद्र कशेरुकामें गठित रहता है। नाम त्रिक २ अश्रुजननास्थि (Lachrymal ), २ अधोवेष्टना स्थि कशेरुका (Sacral vertibrae) है। मेरुदण्ड़ में (Inferior Turbinated ), १ फालास्थि ( Vomar) सबसे नीचे अधःकशेरुका ( Coccyx) होती है। और हन्व स्थ ( Inferior Maxillary ) पाते हैं। यह पशु पादिके लाङ्ग लमें अस्थिरूपसे मिलती है। कपाल और मुख देखो। मानवके पक्ष में वैसा नहीं। मानव जातिको अध: कालको अर्व शाखामें अंसफल कास्थि (Scapula), कशेरुकाके अस्थि क्षुद्र, स्वल्पायतन और चार-पांच से जत्वस्थि (Clavicle ), चक्रदण्डास्थि ( Radius ), अधिक नहीं होते। वस्तास्थिके उभय पाखं ओर प्रकोष्ठास्थि ( Ulna), मणिवन्ध (Carpus), करम सम्म ख श्रोणिफलकास्थि (Os Innominato ) रहता वा हस्ततत ( Metacarpus ) और सकल अङ्ग त्यस्थि है। फिर यह अखि तीन भागमें विभक्त है होते हैं। इनमें असफलकास्थि और जवस्ति कटिका अस्थि (Ilium), कणका अस्थि (Ischium) श्रोणिफलकास्थि से मिलते हैं। इस्तमें मणिबन्ध, और उपस्थ का अस्थि (Pubis)। करभ और अङ्ग ल्यस्थि रहते हैं। इसके मध्य - मेरुदण्डका प्रधान. अंश वक्षःस्थल (Chest or मणिबन्धमें सब मिलाके ८ अस्थि दो तहपर पड़ते Thorax) है। इसके पश्चादभागमें पृष्ठ कशेरुका, हैं। पहले तहमें चारोंके नाम नवास्थि (Scaphoid), सम्म खभागमें बुक्कासि और उभय पाख में बारह अर्धचन्द्रास्थि (Semi-lunar ), कोखास्थि (Cunei- बारह पका तथा उनके उपास्थि हैं। पशु का | form), और वतुलाखि (Pisiform ) हैं। दूसरे मेरुदण्डसे कुछ एथक, प्रथक रहती है। वह केवल सहके चारों समदिपाङस्थि ( Trabezium ), चतु-