ककुम-ककया ५६५ तरफ। २ कोई रागिणी। इसका अपर नाम 'कुहुँ। रागिणी। यह मालकोसको पांचवीं रागिणी है। है। दामोदर मिचने कहा है- - कुकुभा सम्पूर्ण जातिको होती है। दिनके दूसरे ___ ककुभाका प्रङ्ग सुन्दर, वर्धित और रतिके रससे पहर यह गायी जाती है। बकुप् देखो। मण्डित है। मुख चन्द्रक तुल्य झलकता है। चम्मक- कक भादनी (सं• स्त्री.) नलौनामक गन्धद्रव्य, एक माला परिशोभित है। यह रागिणी देखने में परम खुशबूदार चीज़। रमणीय, मनोहर, दानशील और कटाचयुक्त है। (सं.ली.) हृद्रोगाधिकारोक्त वैद्यक “सुपोषिताङ्गी रतिमखिसाङ्गी चन्द्रानना चम्पकदामयुक्ता। पौषध, छातीकी बीमारीमें दो जानेवाली एक दवा। कटाक्षिणी स्यात् परमाविशिष्टा दानेन युक्ता ककुभा मनोज्ञा" अर्जुनको छाल, वच, राम्रा, बला (खरेटो), गोरक्ष- (सङ्गीतदपण) । चक्रकुल्या, हरोतको, शठो ( कचूर ), कुष्ठ, पिप्पलो “धे वतांश ग्रहन्यामा सम्पुर्ण ककुभा मता। और शुण्ठी-प्रत्येकका चर्ण सम भागमें मिला प्राध तीये मूच्र्छनोत्पन्ना सहाररसमखिता।" तोले उपयुक्त परिमाणसे वृतक साथ सेवन करने पर सम्पर्ग ककुभा रागिणो धवतके अंश तथा तृतीय हृद्रोग प्रशमित होता है। मूच्छनासे उत्पन्न है। इसे शृङ्गार रसमें गाना ककुम्भती (वै० स्त्री०) वैदिक छन्दोविशेष । चाहिये। यथा-ध नि स रि ग म प ध। ___ “एकस्मिन् पञ्चके छन्दः शमती षट्कै ककुम्मतो:" ( काचायन) ३ दक्षको एक कन्या। यह धर्मको पनो रहौं। कह (सं० वि०) कस्य सूर्यस्व कुस्खानं जिहोते शोभा, ख बसूरती। ५ चम्यकमाला, चंपका हार। अतिक्रामतीव, क-क-हा-क। १अतिशय उत्त. ६ शास्त्र । ७ प्रवेणी, बालोंको बांकड़ी। निहायत मंचा। २ महत्, बड़ा। (पु.) ३ रथका ककुभ, ककु देखो। एक अङ्ग, गाडोका कोई हिस्सा। सम्भवतः गाडीवान- ककुभ (सं० पु०) कस्य वायोः कुः स्वानं माति को बैठकको ककह कहत है। अस्मात्, क-कु-भा-क पृषोदरादित्वात् ; कं वातं ककूक, ककूल देखो। स्वभाति विस्तारयतीति वा, क-स्कभ-क। १ अर्जन ककूणक (सं० पु. लो०) शिशुकै नेत्रवत्म का एक नामक वृक्ष विशेष, अर्जुन का पेड़। वैद्यकके मतसे रोग, बच्चोंके पपोटेको एक बीमारी। ककूणक क्षौर- यह वृक्ष शीतल होता और भग्न, क्षत, क्षय, विष, दोषसे शिशुके नेत्रवत्म में उपजता है। इससे कण्डर रक्तदोष, मेह, मेद, व्रण एवं हृद्रोगको खोता है। स्रवण होता है। फिर शिशु ललाट, अक्षिकूट और अर्जुन देखो। २ वीणाके प्रान्तदेशका वक्र काठ, धरन। नासा घर्षण किया करता है। वह न तो सूर्यको प्रभा इसका अपर संस्कृत नाम प्रसेवक है। ३ वीणाके देख और न वर्म खोल सकता है। (माधवनिदान) उपरि देशका अंशविशेष। ४ वौणको अलावु या ककूल (सं० पु०-क्लो) १ गोशकदादि चर्णसन्ताप, तांबो। ५ रागविशेष। ६ शिव। ७ पक्षिविशेष, गोबर वगरहकै चरको आंच। २ अपूपपाचनार्थ एक चिड़िया। ८ तीर्थविशेष। यहां कश्यपादि मृण्मय पात्र, पूरी पकानको मट्ठोका वरतन । वास करते हैं। (लिङ्गापु० ४९६०) ८ प्रेत, शैतान्। ककड़ा (हिं. पु.) कटक, चिचड़ा। इसका फल १. पर्वतविशेष, एक पहाड़। (त्रि.) ११ उत्कष्ट, सांप जैसा होता है। ककेडेका शाक बनाते हैं। बढ़िया। करुक (सं० पु.) एकप्रकार कोट, किसी किस्म का ककुभत्वक् (सं० स्त्री०) अर्जुनवक्षका वल्कल, अर्जुन- | कोड़ा। यह कोट पाकस्थलोमें उत्पन्न होता है। की छाल। ककैया (हिं. स्त्री०) लखावरी ईट, लखौरी। यह ककुभशाखा (सं० स्त्री. ) भार्गी, एक जड़ी-बूटी। । कंधो-जैसी होती है। कोई सौ वर्ष पहले इसाईटको ककमा (सं० स्त्री.) १ दिक, पोर, तरफ। २ एक ! भारतमें बड़ो चाल थी। इसोको घिस-घिस पच्छे
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५९६
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