पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/५८३

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१८२ औष्णिह- . साफा। (वि.) २ पगड़ी या साफेसे सरोकार | औसान (हिं. पु.) १ धैर्य, होश, बंधा ख्याल । रखनेवाला। २ अवसान, अखौर। औष्णिह (सं• त्रि०) उष्णिहि भवः, उष्णिह-अज । औसाना (हिं. क्रि०) पाक करना, पकाना, पाल उत्सादिभ्यो ऽन्न । पा४।१६। १ उष्णिक् छन्दोजात । डालना। २ उणिक् छन्दः सम्बन्धीय। ३ उष्णिक् छन्दोद्दारा औसेर (हिं० स्त्रो०) १ विलम्ब, देर। २ चिन्ता, स्तव किया जानेवाला। खोज। ३ दुःख, तकलीफ। पौष्णीक (सं० वि०) उष्णीषे शोभते, उष्णीष-श्रण। औहत (हिं० स्त्री०) अकाल मृत्यु, दुर्दशा, बुरा हाल। १ उष्णोषधारी, पगडी बांधनेवाला। २ उष्णौषधारी औहाती (हिं. खो०) सधवा, सौभाग्यवती, जिस नृपति, पगड़ी बांधनेवाला राजा। ३ उष्णोष- औरतके खाविन्द रहे। धारी देश, जिस मुल्कों पगड़ी बांधनेवाले लोग | औहास (हिं० ) अबहार देखो: औष्णा (सं० लो०) उणस्य भावः, उष्ण-चत्र । गुरुवचनामचादिभाः कर्मपि च । पा ५॥१॥२८। उष्णता, गर्मी। यह तेज और पित्तका स्वाभाविक गुण है। ब-१तन्त्रके मतसे पश्चन खरवस। इसका नाम । औमा (सं• क्लो०) उष्मणो भावः, उपन्-व्यञ् । अनुस्वार है। इस वर्णका अक्षर समानाय सूत्रमे १ उष्णता, गर्मी। २ उष्णास्पर्श, लमस-गर्म । तेजोगुण-1 नहीं लगता। किन्तु षत्वणत्वका कार्य निर्वाह बहुल पदार्थ मात्रमें प्रौमाको उपलब्धि होती है। करनेसे पाणिनिके मतमें इसे प्रयोगवाह कहते हैं। पार्थिव शरीरके स्पर्श से जो औषमा मालूम पड़ता, वह | मुग्धबोधके मतसे इसका नाम 'सु' है। आवति शरीरका नहीं ठहरता। क्योंकि मृतथरीरमें रूपादि | विन्दुमात्र रहती है। इसे अनुना... वर्ण कहते हैं। समस्त गुण रहते भी औभाका होना असम्भव है। 'न' और 'म' के स्थानसे इसकी उत्पत्ति होती है। इसलिये शारीरिक औष्माको शास्त्रने जीवात्माका गुण | कामधेनुतन्त्रके मतसे-अंकार विन्दुयुक्त, पीतवणे निर्दिष्ट किया है। विद्युत्तुल्य, पञ्चप्राणात्मक, ब्रह्मादि देवमय, सर्व- औसक (हिं० स्त्री.) रोग, बीमारी। जानमय और विन्दुत्रययुत्ता है। 'अं' के लिखनको प्रोसत (अ० पु.) १ मध्यमावस्था, सरासरी, पड़ता, प्रणाली-अकारके ऊपर दक्षिण दिक्को एक विन्दु- सबसे बड़े और सबसे छोटेके बीचको अदत। कई मात्र है। रेखाके समूहमें ब्रह्मा, विष्णु और 'रुद्र स्थानोंको संख्याका औसत लगानमें पहले सबको रहते हैं। विन्दमयो रेखाका नाम आद्यायक्ति है। जोड़ डालते हैं। फिर उस जोड़में जितने स्थान होते, (वर्णोद्धारतन्त्र) उतनेसे भाम देते हैं। इस क्रियासे जो उपलब्धि इसका तन्त्रोक्त नाम अंकार, चक्षुष, दन्त, घटिका, पाती, वही औसत कहाती है। (वि.) २ गम्य, समगुह्यक, प्रद्युम्न, श्रीमुख, प्रोति, वीजयोनि, वृषध्वज, नाने लायक, बीचवाला। पर, शशी, प्रमाणोश, सोमविन्दु, कलानिधि, अकर, प्रोसन (हिं. स्त्रो०) १ उष्णता, गरमी। २ सड़न। चेतना, नादपूर्ण , दुःखहर, शिव, मङ्गलमय, शम्च, ३ व्याकुलता, घबराहट । '४ पकाव । नरेश, सुखदुःखप्रवर्तक, पूर्णिमा, रेवतो, शुद्ध, कन्याचर, औसना (हिं. क्रि.) १ उष्णता पाना, गर्मी बढ़ वियद्रवि, अमृतकार्षिणी, शून्य, विचित्रा, व्योमरूपिणी, जाना। २ सड़ना। ३ व्याकुल होना, घबराना। केदार, राविनाश, कुनिका और बुदबुद है। ४ पकना। (को०)२ परब्रह्म। ३ महखर। नौसर (हिं.) अवसर देयो। "विन्दुविसर्ग:सुमुखः परः सर्वावधः सहः।" (भारत, अनु० १०॥१२६)